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होगी कि एक पैर पूर्वदिशा में चलेगा और एक पैर पश्चिमदिशा में चलेगा। यह गति कैसी होगी ? यह जीवन की वैधता ही आज के युग की सबसे बड़ी विडम्बना है । मन जैसी दिव्यशक्ति का उचित दिशा में केन्द्रित उपयोग ही मानव को इस विडम्बना से मुक्ति दिला सकता है और तभी मानव सच्चे अर्थ में मानव बन सकता है ।
फरवरी १९७५
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