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शुभाशा का सन्देश वाहक : नववर्ष
पुराना वर्ष जर्जर, क्षीण एवं शीर्ण हो कर महाकाल के गाल का ग्रास हो रहा है, और नया वर्ष जन्म ले रहा है। पुराना वर्ष कैसा गुजरा ? अब उक्त प्रश्न और उसके उत्तर के लिए सिरदर्द करने की कोई अपेक्षा नहीं है। जैसा भी था गुजर गया। महलों में गुजरा या झोपड़ी में? प्रकाश में गुजरा या अन्धकार में? सुख में गुजरा या दु:ख में? इन विकल्पों से कोई लाभ नहीं है, अब आते वर्तमान में। ये विकल्प भविष्य की ओर बढ़ते प्रगतिशील कदमों के आगे रोड़े ही बन सकते हैं, बाधक ही बन सकते हैं, साधक नहीं। जो बीत गई सो बात गई। गया वक्त फिर कभी लौटा है? नहीं, कभी नहीं। भगवान महावीर ने कहा है-'जा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिनियत्तई।'
अतीत के उत्थान या पतन से, विकास या हास से जो शिक्षा मिली है, जो बोध हुआ है, उसके प्रकाश में आने वाले भविष्य की यात्रा करनी है। अब अतीत में लौट कर कुछ नहीं हो सकता, वर्तमान में रह कर ही कुछ हो सकता है । कर्म का कुरुक्षेत्र वर्तमान ही है, न अतीत है और न भविष्य। इसी संदर्भ में एक अनुभवी मनीषी ने कहा था-'वर्तमानेन कालेन वर्तयन्ति विचक्षणाः' - विचक्षण बुद्धिमान व्यक्तियों का वर्तमान काल के अनुसार ही वर्तन अर्थात् कर्मव्यवहार होता है।
जीवन बहुमूल्य है। बहुमूल्य क्या अनमोल है। उसका लघु-से-लघुतम एक क्षण भी इतना मूल्यवान है कि स्वर्ग का राज्य भी उसकी तुलना में नहीं आ सकता। उक्त जीवन को अंधेरे कोने में मुँह लटकाए, मुहर्रमी सूरत बनाये, आँसू बहाते गुजार देना, जीवन के प्रति कितना बड़ा अन्याय है? यह इतना भयंकर अपराध है कि इसका कभी कोई परिमार्जन नहीं हो सकता। जीवन पैर पसार कर मुर्दे की तरह पड़े रहने के लिए नहीं है। संघर्ष, निरंतर संघर्ष ही जीवित-प्राणवान जीवन का एक मात्र अबाधित लक्षण है, चिह्न है। संघर्ष के एक-से-एक नये मोर्चे खोलो, अविचल मनोबल के साथ प्रतिकूलताओं एवं बाधाओं
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