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इधर या उधर । आखिर दो घोड़ों पर एक साथ कैसे सरकस के खेल कुछ क्षणों के मनोरंजन ही कर सकते हैं, स्थायी समाधान नहीं ।
नई पीढ़ी के मेरे साथियों ! मृतप्राय जड़क्रियाकाण्डों पर आलोचना करो, पर वह करो सधे हाथों से। जैसे कुम्हार अपने कलाकुशल सधे हाथों से मृद्भाण्ड पर चोट करता है, पर जानते हैं, वह चोट ध्वंस नहीं, निर्माण करती है । मजाक नहीं, आलोचना करो अपने मतपंथों के भ्रमों की। पर, वह फूहड़ न हो, पानी छानते छानते आदमी का अनछाना खून पीने जैसी। यदि आपको कुछ भी आस्था नहीं है अपने में, तो चलो उस दूसरे शिविर में इस पुराने शिविर में इधर-उधर क्या ताकझांक रहे हो ?
मेरी बात कड़वी है । पर मुझे कहना है शिष्टता के लिए शासन की गरिमा के लिए | आप ही शासन की गरिमा का संरक्षण नहीं करेंगे तो कौन करेगा ? पुत्र ही जब पिता की फर्म को ठुकराएगा, उसे बदनाम करेगा तो क्या होगा झाडू दो, कूड़े को बाहर फेंको, पर असली माल को समेट कर करीने से फिर अपनी जगह सजाओ । दूसरों के द्वारा दुर्भावना से की गई लांछनाओं को अपने नये शब्दों में आबद्ध कर अपने को लांछित करना, कहाँ की बुद्धिमत्ता है ?
सितम्बर १९७४
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वारी करते रहेंगे। जीवन के यथार्थ
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