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________________ परन्तु मेरा अन्तर्मन पीड़ा से तब भर उठा, जब मुनिश्री भी उन सबके साथ हो लिए। उन्होंने भी बनिए का, नेताओं का और धर्म के ठेकेदारों के नाम से सम्बोधित धर्मगुरुओं का खुल कर मजाक उड़ाया । लोग हँसते रहे, तालियाँ गड़गड़ाते रहे, और मुनिश्रीजी उत्साह की तरंग में बढ़-बढ़ कर भगवान पर, भक्तों पर, धर्माचार्यों पर, तीर्थंकरों और पैगम्बरों पर एक के बाद एक फबतियाँ कसते रहे। और आखिर में तो मेरा भावुक हृदय तब टूक टूक हो गया, जब मुनिश्री ने जैनों की पानी छान कर पीने वाली चर्यापद्धति पर मजाक का एक अत्यन्त क्रूर प्रहार किया। उनका कहना था कि ये जीवदया के नाम पर पानी छान कर पीने वाले इधर पानी तो छान कर पीते हैं, और उधर आदमी का खून अनछाना ही पी जाते हैं। उपस्थित ग्राम्य युवकों ने तालियाँ पीटी, हँसी के फव्वारे छोड़े और जैनों की इस धर्मक्रिया पर एक दूसरे ने आपस में इशारेबाजी की । मुनिश्री भी अपनी कविता की इस दाद पर हँसे - मुस्कराए और अन्दर ही अन्दर अपने क्षुद्र अहं की संपूर्ति का मधुरस चाटने लगे। मैं मान लेता हूँ, जैन समाज की कुछ गलतियाँ हैं, जो इन तथाकथित गुरुजनों के भ्रान्त प्रवचनों से ही अतीत में उद्भूत हुई हैं। यदि आज का गुरु प्रबुध्द हुआ है और कुछ परिष्कार करना चाहता है, तो मैं उसका हृदय से स्वागत करूँगा । सुधार होना ही चाहिए। परिष्कार अपेक्षित ही है। परन्तु परिष्कार का यह क्या ढंग कि भीड़ के साथ हो लिए। अपना कोई आदर्श नहीं, अपनी कोई गरिमा नहीं। अपनी हर आस्था पर यों ही बिना किसी खास मतलब के छींटाकशी करना और वह भी पहले से ही अनादर की भावना रखने वाली इतर जनता में । मैं कुछ समझ नहीं पाया। हाँ, इतना अवश्य समझ पाया कि वाहवाही लेनी है, खुद को क्रान्तिकारी कहलाना है। क्रान्ति करनी है, तो घर में बैठिए, और लताड़िए अपने भक्तों को । किन्तु अन्दर में सब कुछ चलने देना, उन्हीं आदमी का अनछाना खून पीने वालों से अपनी सुखसुविधा के साधन जुटाते रहना, अपने मत-पंथों की टूटती, गिरती, ढहती दीवारों की, सम्प्रदाय की अनर्गल मान्यताओं की तत्त्वहीन उड़ाऊ तर्कों के गारे-मिट्टी से मरम्मत करते जाना, कहाँ की क्रान्तिकारिता है ! सम्प्रदाय की तो छोटी-सी धूलिरेखा भी नहीं पार की जाती और उधर एक ही छलांग में हिमालय लाँघने के नारे बुलन्द किए जाते हैं। यह सब खेल ज्यादा दिन नहीं चल सकेगा। एक दिन होना ही होगा, (२२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001306
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size13 MB
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