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उसके सही अर्थ में अपनाया जाएगा। अनेकान्त की दिव्यध्वनि है-मेरा ही सत्य, मात्र सत्य नहीं है, सत्य अनन्त है। और वह जहाँ भी कहीं है, जिस किसी भी रूप में है, जिस किसी के भी पास है-मेरा है, मेरा है। सत्य मेरे लिए समर्पित नहीं है, अपितु मैं सत्य के लिए समर्पित हूँ।
अगस्त १९७४
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