________________
आम का पेड अपने मूल, स्कन्ध, शाखा, पत्र, पुष्प-मंजरी, फल, रस और बीज आदि हर अंग में समाया हुआ है | तभी तो कहा जाता है- यह आम की जड़ है, यह आम का तना है, यह आम का पत्ता है, यह आम की मंजरी है-फल है-रस है और यह आम की गुठली है | आम का वृक्ष भेद में अभेद और विषमता में समता सूचित करता है; अनेकत्व में एकत्व का परिचायक है । सत्य भी विचारभेद के अनेक-विध परस्पर विरोधी जैसे रूपों में भी एकत्व का परिबोध देता है। बाहर से अन्दर में चिन्तन-दृष्टि जितनी भी गहराई में पैठती जाएगी, उतनी ही विषमता एवं अनेकता की बुद्धि दूर होती जाएगी और समता एवं एकता की अनुभूति उभरती जाएगी ।
हमारे शरीर के अवयवों में पैर अलग हैं, हाथ अलग हैं, सिर और धड अलग हैं । आँख, कान, नाक, जीभ और त्वचा अलग हैं | हर अंगुली अलग है, अंगूठा अलग है । अन्दर में मांस, मज्जा, रक्त और हड्डी आदि भी एक दूसरे से भिन्नरूप हैं । किन्तु क्या वे सब मिल कर शरीर के रूप में एक नहीं हैं । सबमें शरीर का एकत्व अखंडरूप में परिलक्षित होता है । एक दो उदाहरण क्या, विश्व की हर वस्तु का यही रूप है । विचारों का भेद बाहर की विभिन्नता में है । यदि अन्तरंग में सूक्ष्मता से देखा जाए, तो भेद में भी अभेद-अनेकत्व में भी एकत्व प्रकाशमान होता नजर आएगा; सर्वत्र एक अखण्ड सत्य के ही दर्शन होंगे। फलस्वरूप सत्य पर से मेरे-तेरे के द्वैत की छाप साफ हो जाएगी। अपने अभिमत खण्डसत्य के लिए पूर्ण एवं अखण्डसत्य का वैचारिक अहम् ही संघर्ष का मूल है | जब व्यक्ति या समाज, मत या पंथ, नेता या अनुयायी, गुरु या शिष्य यह आग्रह एवं दुराग्रह करके बैठ जाते हैं कि हम ही सच्चे हैं। जो कुछ भी सत्य है, वह एकमात्र हमारे ही पास हैं, अन्य किसी के पास कुछ भी नहीं हैं । अत: हम जो कहते हैं, वही माना जाए, दूसरों की बातें सब गलत हैं, मिथ्या हैं, अत: वे मानने के योग्य नहीं हैं, उन्हें मानना चाहिए ही नहीं | जब इस प्रकार एकान्त का दुराग्रह खडा हो जाता है; सत्य के नाम पर अपने को ही एकान्तत: स्वीकारा जाता है और दूसरों को सर्वथा हठात् नकारा जाता है तो विग्रह एवं संघर्ष स्वयं उठ खड़े होंगे। उन्हें कोई कैसे दबा कर रख सकता है ? कारण हो, और उसका कार्य न हो, यह कभी हुआ है ? कभी नहीं। अग्नि हो, और उसका दाह न हो, ऐसा न कभी हुआ है और न होगा ।
(१७)
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org