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साध्वियों की पद-यात्रा
साधु-साध्वियों द्वारा वाहन प्रयोग के सम्बन्ध में आपके विचार अवगत हुए। अभी निकट में साधुओं द्वारा रोगादि कारण सापेक्ष वायुयान एवं कार आदि की अनेक यात्राएँ हुई हैं । आपके तथाकथित श्रमण संघ में भी । वैसे वाहन-यात्रा क्या है और उससे क्या हानि या लाभ है, इस पर गहराई तक विचार करने की अपेक्षा है | प्राचीन आचारसूत्र आचारांग आदि आगमों में कहाँ हैं शब्दश: वाहन का निषेध, यह तलाशना है | क्या नौकाएँ वाहन नहीं हैं? जिनका उपयोग तीर्थंकर काल से होता आ रहा है | वह भी बिना किसी विशेष कारण के । भगवान महावीर द्वारा बार-बार गंगा पार करने में रोगादि या तथाकथित उपद्रव आदि अन्य कोई कारण मिला नहीं है | मिला हो, तो शीघ्र ही समाज के गद्दीनशीन गुरुजनों से मालूम कर लीजिए । प्राचीनकाल के लब्धि प्रयोग से व्योम-विहार करने वाले मुनि, कहाँ पादविहारी थे ? पूज्य श्री जवाहरलालजी महाराज और पूज्य श्री मुन्नालालजी महाराज जैसे उत्कृष्ट संयमी डोली से वर्षों ही ग्रामानुग्राम विहार करते रहे हैं। क्या डोली वाहन नहीं है ? यह तो पुरातन युग से ही राजा-रानी, श्रेष्ठी और दुल्हा-दुल्हन आदि की शानदार सवारी रही है । इस पर तो दीक्षार्थियों की भी शोभा-यात्राएँ निकलती रही हैं । आज भी श्रमण-संघ के महान आचार्य, वर्षों हो गए, डोली से लंबे विहार कर रहे हैं । डोली साधु उठाते हैं, इससे क्या ? कोई भी उठाए, डोली के वाहन होने में क्या फर्क पड़ता है ? यदि कुछ फर्क पड़ता है तो शीघ्रगामी यांत्रिक वाहन में भी वह पड़ सकता है । डोली में साधु के विहार करने का कहाँ विधान है, जरा बताएँ तो सही ? क्या इसमें सुविधाभोग का भाव नहीं है, जिसका कि आपने वाहन की चर्चा में जिक्र किया है ? जिस साधुसाध्वी के पास शिष्यादि नहीं हैं, बताइए, वह क्या करे ? क्या सत्ताधारी बड़े लोग ही यह सब लाभ उठाने के लिए हैं, साथ ही सुविधाभोगी बनकर भी उग्र क्रिया-काण्डी के रूप में जय-जयकार पाने के लिए हैं । समाज का नया मस्तिष्क आज गणित लगाने
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