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________________ कोई खास प्रतिबद्ध सीमा नहीं है । फिर भी ऊपर की पंक्तियों में अहिंसा और हिंसा के सम्बन्ध में जो भावात्मक पक्ष पर विवेचन किया है, वह प्रस्तुत में अहिंसा पर स्पष्टता से काफी प्रकाश डाल देता है । जीवन-यात्रा में व्यवहार का भी काफी महत्त्व है । उसे सर्वथा ही अपदस्थ कर देना, लेखन का उद्देश्य नहीं है । उद्देश्य है भावात्मक निश्चय दृष्टि की तुला पर व्यवहार की उपादेयता एवं अनुपादेयता को तोलना, परखना निश्चय के अभाव में व्यवहार व्यवहार नहीं, मात्र व्यवहाराभास रह जाता है । अतः गमन-आगमन, भोजन, स्व-पर-हित में किए अन्य निर्माण कार्य, किसी आवश्यक वस्तु का उठाना रखना, शयनाशन, बोलना, लिखना पढ़ना आदि कोई भी कार्य हो, यदि वह विवेक के प्रकाश में यतना की भावना से किया जाता है, तो वह साधक के लिए निरन्तर अहिंसा की ही साधना है, उपासना है । हर कर्म की पृष्ठभूमि में विवेक एवं यतना का सम्यक् - प्रकाश अपेक्षित है । फरवरी १९८३ Jain Education International (२३४) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001306
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size13 MB
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