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हूँ आप से कि आप ताजा अभी का बना भोजन पसन्द करते हैं , या दस-पाँच दिन का बासी, सड़ा-गला, दुर्गन्ध मारता भोजन पसन्द करते हैं। आपको नये स्वच्छ वस्त्र पसन्द हैं, या फटे-पुराने, मैले जीर्ण-शीर्ण | निवास के हेतु स्वयं के या परिवार के लिए नये उपयोगी भवन अच्छे हैं या जीर्णशीर्ण खण्डहर, जिनकी हर ईंट गिरती हुई आपकी और आपके बालबच्चों की कपाल क्रिया करने को प्रस्तुत है ? स्पष्ट है, आपको इनमें से हर वस्तु नयी और उपयोगी ही पसन्द है, पुरानी और अनुपयोगी नहीं । फिर क्या बात है, आप अतीत के मोह में, परम्परा के दुराग्रह में, तथाकथित सामाजिक तथा धार्मिक आदि के रूप में प्रचारित अनेक अर्थहीन अनुपयोगी मान्यताओं एवं रीति-रिवाजों के मुर्दो को अपने मन मस्तिष्क पर दोये जा रहे हैं | जितनी भी जल्दी हो सकती है, आप मुर्दो को जला देते हैं, दफना देते हैं । घर में पड़ा हुआ मुर्दा सड़ता है, साथ ही अनेक जीवितों को भी अपने जैसा मुर्दा बना डालता है । अत: सावधान रहिए, समयोचित साहस कीजिए, अतीत की जो भी मान्यताएँ, परम्पराएँ अपनी उपयोगिता खो बैठी हैं, उन्हें विसर्जित कर दीजिए । उन्हें बनाये रखने में, उनसे चिपटे रहने में, आपका ही नहीं, किसी का भी भला नहीं है। हाँ, यह बात में पहले कह चुका हूँ कि जो अतीत जीवित है, उपयोगी है, उसे अवश्य साथ लेकर चलिए । जो जीवित है, उपयोगी है, वह सही अर्थ में अतीत है भी नहीं । अतीत का अर्थ ही अनुपयोगिता है |
आदि तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव से पूर्व मानवजाति चिरातिचिर काल से वन्य जीवन यापन करती आ रही थी । वह जीवन सभ्यता की दृष्टि से एक संस्कार हीन, प्रगति शून्य अर्ध-मानव सा जीवन था । प्रकृति से प्राप्त कन्दमूल, फल आदि पर ही जीवन-यात्रा चल रही थी । भोग तो था किन्तु भोग के लिए उत्पादन के रूप में श्रम एवं पुरुषार्थ जैसा कुछ नहीं था । और, जब भोग सामग्री का अभाव हुआ, दुष्काल पड़ा तो असहाय मानव प्रजा विनाश के कगार पर पहुँच गई । भगवान ऋषभदेव ने तब उस अनुपयोगी हुई जीवन पद्धति को ध्वस्त किया, और योग्य कर्म एवं पुरुषार्थ के द्वारा जीवन संरक्षण एवं विकास की समयोचित शिक्षा दी, साथ ही दीक्षा भी | यदि भगवान समय के परिवर्तन को न पहचानते, और पुरातन जीवन चर्या को बदलकर उसे युगानुरूप नया रूप न देते, तो आज धरती पर मानव-जाति का कोई चिह्न न रहता । अनन्तर समय-समय पर अन्य समागत युगनेताओं तथा महापुरुषों ने भी मानवजाति के उत्थान हेतु मानव सभ्यता की धारा को अनेक नये मोड़ दिए हैं । इतिहास को ध्यान में रखिए, मृत अतीत का, मृत परम्पराओं एवं मान्यताओं का, दुराग्रह पर
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