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की प्रतीक्षा में हैं , यदि इन प्रश्नों का निकट भविष्य में सही समाधान न मिल सका, तो सर्वनाश द्वार पर खड़ा ही है ।
भारत के पुरुष वर्ग को नारी के प्रति अपना दृष्टिकोण बदलना ही होगा। नारी को उसका अपना न्यायोचित गौरव देना ही होगा । मातृ जाति को भी चाहिए कि वह अधिकार या सुरक्षा के प्रश्न पर परमुखापेक्षी न रहे । अपने अंदर में दुर्गा को जगाना ही होगा अब उन्हें । जिस दिन उनके अन्दर की सोई हुई दुर्गा शक्ति-भवानी जगेगी, उस दिन उनका कोई भी बाल बाँका नहीं कर सकेगा, उनकी इज्जत के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकेगा, कभी नहीं कर सकेगा।
नवम्बर-दिसम्बर १९८२
(२१९)
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