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परिवारों की क्रीत दासी के रूप में जीवन जीने वाली नारियों की तो कोई बात ही नहीं, उनका मूल्य ही क्या है ? द्रौपदी जैसी महारानी हजारों उच्च-वर्ग के लोगों से खचाखच भरी सभा में नंगी की जाती है, और विरोध में किसी का मुख नहीं खुलता है, जीभ नहीं हिलती है । नारी है, उसके साथ कहीं भी, कैसा भी व्यवहार हो सकता है। कौन पूछने वाला है कुछ ?
भारत का इतिहास लाखों ही वर्षों की लम्बी यात्रा कर चुका है । पर, नारी के प्रति यह अत्याचारों की शृंखला नहीं टूटी है । आज के विकसित युग में भी भारत की नारी प्रायः वही यंत्रणाएँ भोग रही है । उसके आँसू अब भी उसी तरह बह रहे हैं । आज भी वह असहाय है, न्यायोचित स्वतंत्रता के अधिकारों से भी एक तरह से वंचित है |
मैं हैरान हूँ, आज भारत को हो क्या गया है ? भारतीय तरुणाई की गरिमा क्यों लुप्त हो गई है ? अब तो उक्त अतीत से भी स्थिति बहुत ही खतरनाक मोड़ पर पहुँच गई है । आए दिन अखबारों के पृष्ठ, जो खबरें लेकर जनता तक पहुँचते हैं । उनमें और तो अभद्र जैसा कुछ होता ही है, किन्तु सबसे अधिक लज्जा - जनक वे पृष्ठ होते हैं, जिन पर नारियों के अपहरण, बलात्कार के साथ हत्याओं के कुरूप काले अक्षर अंकित होते हैं । अबोध बालिकाओं तक को नहीं छोड़ा जाता । पिता के द्वारा पुत्री के और भाई के द्वारा बहन के अपमान की, शील भंग की घटनाएँ पढ़ने आती हैं, तो रोम-रोम जल उठता है मेरा । लोग वर्तमान चालू युग को कलियुग कहते हैं । मैं कहता
दुर्घटनाएँ, नारी के प्रति यह अशोभन आचरण तो डंके की चोट घोषणा करते हैं, कि कलि-युग ही नहीं, यह नरक-युग है । मानवता की ज्योति विलुप्त हो रही है, निशाचर राक्षसों की अँधेरी कालरात्रि का सब ओर क्रूर अट्टहास हो रहा है ।
आत्मवाद, आत्मवाद ही नहीं, परमात्मवाद का पक्षधर भारत आज कैसे दिग् - भ्रान्त हो गया है । प्रत्येक प्राणी में परमात्मा का दर्शन करने वाला भारत, आज अपनी जन्मदाता मातृ-जाति में परमात्मा तो क्या, आत्मा के भी दर्शन क्यों नहीं कर रहा है ? मिट्टी के पिण्ड से आगे, उसकी दृष्टि क्यों नहीं जा रही है ? नारी में से माता, बहन एवं पुत्री आदि के पवित्र भाव क्यों लुप्त हो गए हैं ? नारी के दिव्य शरीर में भी सब ओर से हटकर केवल एक ही अंग पर पुरुष की दृष्टि केन्द्रित हो गई है ? ये वे जलते प्रश्न हैं, जो आज समाधान
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