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________________ बहन का और पति की हाजिरी में पत्नी का शील हरण करना और वह भी घातक शस्त्रों की नोक पर सामूहिक, यह कैसा अनैतिक एवं पाशविक दुराचरण है? क्या यही नैतिकता है, सभ्यता है, जिसके समक्ष हम विदेशियों की नैतिकता एवं सभ्यता की आए दिन खिल्ली उड़ाते हैं । यह मत समझिए कि इन दुष्कर्मों में साधारण क्षुद्रजन ही लिप्त हैं । शिक्षित कहे जाने वाले सरस्वती-पुत्र तक भी इसके लिए कलंकित हैं । अभी-अभी अलिगढ़ विश्वविद्यालय में क्या हुआ है, मालूम है न? प्रामाणिकता : दूसरी बात प्रामाणिकता की है । यहाँ बात-बात में झूठ बोला जाता है, एक-दूसरे को छला जाता है। नकली दवाइयाँ बनती हैं, जिनसे हजारों रोगी जीवन की आशा में मौत के घाट उतर जाते हैं | नकली सीमेन्ट के निर्माण से बड़े-बड़े विशाल पुल, नदी-बाँध और भवन सहसा ध्वस्त हो जाते हैं, और हजारों लोगों के प्राण यों ही कीड़े-मकोडों की तरह चले जाते हैं । अस्पतालों में घावों पर बाँधने के काम में आनेवाली मरहम-पट्टियाँ तक भी निम्न स्तर की होती हैं, जिनके कभी-कभी भयंकर दुष्परिणाम बेचारे रोगियों और अभिभावकों को भोगने पड़ते हैं । पत्रकार मनोरमा दीवान ने एक समाचार में इस सम्बन्ध में लिखा है कि ब्रिटिश सरकार ने अपने सभी अस्पतालों को यह निर्देश दिया है कि “भारत से आयात किए गए सामान को, जिसमें घावों पर बाँधी जाने वाली पट्टियाँ, रूई और गाज सम्मिलित हैं, तुरन्त नष्ट कर दिया जाए । क्योंकि उनका निर्माण उचित ढंग से नहीं हुआ है । उनके प्रयोग से टेटनस और गेंगरिज जैसी जानलेवा बीमारियाँ होने की आशंका है ।" इसी सन्दर्भ में भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भी आए दिन बोलते हैं कि निर्माण की क्वालिटी गिरने नहीं पाए, पर कौन ध्यान दे रहा इस पर । ये अर्थ पिशाच तो जो कुछ भी कर लें, वह सब थोड़ा ही है । मिलावट की तो कोई सीमारेखा ही नहीं है, । दूध में, घी में, मिठाई में, मशाले में, तेल में सब ओर जीव-लेवा मिलावट का बोलबाला है । लगता है, ईमानदारी नाम की कोई चीज कहीं रह नहीं गई है । भगवान महावीर के शब्दों में सत्य कभी भगवान था-'सच्चं खु भगवं ।' पर अब वह भगवान मर चुका है । खेद है, उसके मरने का कहीं मातम भी नहीं मनाया जा रहा है । (२०८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001306
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size13 MB
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