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एक ऐतिहासिक पर्यवेक्षण समयोचित परिवर्तन : एक जीवन्त प्रक्रिया
शासनतंत्र चाहे धार्मिक हो, चाहे सामाजिक या राष्ट्रीय, शासक को उचित समय पर उचित निर्णय लेना आवश्यक होता है । यह निर्णायक शक्ति जिस शासक में जितनी ही अधिक अच्छी होती है, वह उतना ही अच्छा और सफल शासक होता है | उसके निर्णय के परिणाम दूर-दूर तक के देश-काल पर अपना प्रभाव डालते हैं और अपनी अनुगत प्रजा का हित-साधन करते हैं।
कर्मभूमि-युग
जैन पौराणिक गाथाओं के अनुसार मानवजाति का वह भी एक युग था, जब वह आदिम या वनवासी सभ्यता में अर्धमानव या अर्धपशु का-सा जीवनयापन कर रही थी । कन्द, मूल, फल ही उसका भोजन था। नाना प्रकार के वृक्ष ही उसके एकमात्र जीवन-यात्रा के आधार थे । समय आगे बढ़ा । इधर जन-संख्या बढ़ी और उधर वृक्ष कम हुए । भयंकर दुष्काल । भूख का हाहाकार । परस्पर लड़ाई-झगड़ा | मानवजाति सर्वनाश के कगार पर । कुलकर या कुलक नेता कुछ निर्णय नहीं कर पा रहे थे कि क्या करें और क्या न करें। बेचारे दिड़मूढ थे | युवक ऋषभकुमार, जो जैन-परंपरा के आदि तीर्थंकर माने जाते हैं, आगे आए | उन्होंने भोगभूमि की समाप्ति की और कर्मभूमि-युग के प्रारंभ की घोषणा की । एक एक व्यक्ति के रूप में बिखरे मनुष्यों को
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