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________________ मैं कहता हूँ, बिल्कुल ठीक है । कुछ मत करो । कौन कहता है, तुम्हें करने के लिए जब नियति होगी, अपने आप हो जाएगी । और यदि वह तुम से होनी होगी, तो तुम्हीं से होगी । लाख इन्कार करो, नहीं करना है नहीं करना है, फिर भी वह तुम्हीं से होगा । तुम्हें ही करना होगा । व्यर्थ ही करने और न करने के विकल्पों में क्यों उलझ रहे हो ? धारा जिस गति से बह रही है, बहने दो । न उसे जोर देकर बहावो, न रोको । भारत के एक महान तत्त्वदर्शी ऋषि ने कहा था प्रस्तुत सन्दर्भ में, कि सुख हो अथवा दुःख हो, प्रिय हो अथवा अप्रिय हो, जो प्राप्त होता जाए, उसे स्वीकारते जाओ । किन्तु सावधान रहिए, हृदय को पराजित न होने देना । न मन को उछलने देना और न गिरने देना । जून १९७८ " सुखं वा यदि वा दुःखं, प्रियं वा यदि वाऽप्रियम् । प्राप्तं प्राप्तमुपासीत हृदयेनाऽ पराजितः ।।” Jain Education International ( १९५) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001306
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size13 MB
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