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अफसर ने जीत की खुशी मनाने के लिए सारे जवानों को इकट्ठा किया, तो उसे याद आया, कि एक जवान उधर बैठा था । उसे लाने के लिए दूसरा जवान भेजा गया | करीब दस मिनट बाद अफसर को मालूम हुआ, कि जवान के प्राण पखेरू उड़ चुके हैं । उसके माथे पर, बीचों-बीच विना उसको लक्ष्य किए, रात के अंधेरे में यों ही बरसती गोलियों में से सिर्फ एक गोली लगी थी ।
यह एक उदाहरण है । ऐसे अनेक मार्मिक उदाहरण हैं, जिन पर से लेखक इस निष्कर्ष पर पहुँचा है, कि हर गोली पर खाने वाले का, उस गोली से मरने वाले का नाम लिखा है । यह नहीं, कि एक को मारने वाली गोली किसी दूसरे को मार दे ? यह भी नहीं, कि अमुक समय पर लगने वाली गोली चूक जाए, और किसी दूसरे समय पर लगे । यह भी नहीं, कि बचने का प्रयत्न करने पर गोली से कोई बच ही जाए ।
भारतीय-दर्शन में इसे नियति कहते हैं | जो भी हुआ है, वह पहले से नियत था । जो हो रहा है, वह भी नियत है, और जो होने वाला है, वह भी नियत है, अनन्त अतीत काल से नियत है । हर जड़चेतन द्रव्य अनन्त भूत, अनन्त भविष्य और अनन्त वर्तमान पर्यायों से युक्त है । भयंकर युद्ध में, मृत्यु के क्रीडांगण में भी जो मरने वाला है वही मरता है, जो बचने वाला है वही बचता है । कुछ भी उलट-फेर नहीं होता | यह नहीं, कि बचने वाला मर जाए, और मरने वाला बच जाए | जिसको जब, जिससे, जो भी प्राप्त होना है, उसको तब उससे, वह प्राप्त होना ही है । इसी को लोक भाषा में कहा जाता है-'दाने-दाने पर लिखा है, खाने वाले का नाम ।'
विश्व में अकस्मात् जैसा, अचानक जैसा कुछ है नहीं । द्रव्य चाहे जड़ हो चाहे चेतन, जिसकी जो भी पर्याय, परिणति, गति, स्थिति, परिवर्तना जिस काल में, जिस क्षेत्र में, जिस स्थिति में, जिस निमित्त और साधन से होनी है, वही होकर रहती है । शरीर जिस समय में, जिस क्षेत्र विशेष में और जिस निमित्त से छूटना है, वह छूटता है । न कुछ आगा-पीछा हो जाता है, न उल्टा-सीधा होता है । कोई किसी तरह की अव्यवस्था नहीं । एक-एक कदम व्यवस्थित है, नियत है अन्यथा वीतराग सर्वज्ञ के ज्ञान का कुछ अर्थ ही नहीं रहेगा | सर्वज्ञ को भविष्य के लिए होने जैसा कुछ दिखाई दे, और हो जाए उसके विपरीत कुछ और ही, तो फिर वह सर्वज्ञ का सत्य ज्ञान कैसा ? यह तो हमारे छद्मस्थों जैसा ही हुआ,
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