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कि कल्पित या संकल्पित, या अनुमानित किया कुछ और हो गया कुछ और ही । देखा घोड़ा, हो गया गधा, और देखा गधा, हो गया घोड़ा । यह गड़बड़ झाला सर्वज्ञ के केवल ज्ञान में कैसे हो सकता है ।
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वर्तमान में हमारी दृष्टि में अनुपस्थित सर्वज्ञ की बात छोड़ भी दी जाएं, तब भी योग और ज्योतिष आदि के वे अकाट्य प्रमाण हैं, कि जो ध्याता की अनुभूति में प्रतिबिम्बित हुआ, आगे चलकर समय पर वही घटित हुआ । नाम, स्थान, काल, घटना क्रम आदि में कुछ भी तो परिवर्तन न हुआ । जो हुआ, पहले से वज्ररेखांकित ही हुआ । इन विद्याओं में जब कभी जो भूलें होती हैं, वह जांच-परखने की भूल का परिणाम है । शास्त्र - विद्या की भूल नहीं, व्यक्ति के • अपने चिन्तन की भूल है । यह व्यक्ति का बुद्धि-प्रमाद है, शास्त्र - प्रमाद नहीं ।
और तो और ! स्वप्न में भी भविष्य का पूर्वाभास हो जाता है । श्री कीर्तिस्वरूप रावत ने अपने स्वप्न चर्चा के एक लेख ( साप्ताहिक हिन्दुस्तान, ८ मई १९७७ ) में स्वप्न की अनेक सत्य घटनाओं का वर्णन किया है । एक बहुत ही दिलचस्प घटना है ।
एक महिला अपने पति के साथ छुट्टियों में कहीं सैर करने गई हुई थी । उसने स्वप्न देखा, कि उसकी लड़की का छोटा पुत्र तेज बुखार में है । और जब वह उसे गोद में लेकर झुलाने लगी, तो इतने में ही कमरे के दरवाजे पर उसे अपना लड़का दिखाई दिया । वह अपने एक हाथ को सिर पर रखे चौखट का सहारा लेकर खड़ा हुआ था । उससे पूछा गया कि क्या बात है, तो उसने बतलाया कि वह टेलीफोन के खंभे से गिर पड़ा था । उसकी आंख के ऊपर चोट आई थी और बहुत तेज खून बह रहा था !
स्वप्न इतना प्रभावोत्पादक था, कि महिला तुरन्त अपने पति के साथ घर लौट आई । कमाल था, कि समग्र घटना उसी क्रम से और उसी रूप में घटित हुई, जिस क्रम से और जिस रूप में वह स्वप्न में प्रतिभासित हुई थी । महिला का लड़का फोन कम्पनी में लाईन मैन था और एक टेलीफोन के खंभे पर से काम करता हुआ गिर पड़ा था ।
प्रश्न बहुत गंभीर है । अभी तक घटना घटित न हुई है, तो पहले से ही
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