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________________ हो गए हैं कि हजारों वर्ष बाद आज भी संसार उनसे चमत्कृत है । पर, वे जगे थे, बदले थे मामूली-सी घटनाओं पर से । भोगासक्त विलासी राजा अरविन्द संध्या समय महल की छत पर खड़ा है | देख रहा है संध्या के सुनहरे रंगों की अद्भुत छटा क्षितिज पर के बादलों में । कुछ ही देर में सब समाप्त । वही काले काले बदरंग बादल । हो गया वैराग्य । संसार का ऐश्वर्य नश्वर है । यह बोध मिला और चल पड़ा मुनि बनकर आर्हती साधना के अग्नि पथ पर । कलिंग नरेश करकण्डू । एक बछड़े को जवान होते,और फिर वृद्ध होते देखा तो बोध हो गया, कि न यौवन स्थायी है और न जीवन । जैन साधना का यह प्रबुद्ध यात्री प्रत्येक बुद्ध केवली बना, निर्वाण पा गया । नौजवानों को बूढ़े होते देखना, क्या कोई बहुत बड़ी फिलासफी की बात है ? बात बड़ी नहीं, बड़ी है देखने की दृष्टि । शाक्य राजकुमार सिद्धार्थ एक रोगी को देखते हैं, एक वृद्ध और एक मृत (शव) को भी देखते हैं, और उनके अन्तर्मन में वैराग्य की ज्योति प्रज्वलित हो जाती है । फलस्वरूप अपने युग की परमसुन्दरी पत्नी यशोदा को और नवजात पुत्र राहुल को छोड़कर रात के अन्धेरे में निर्जन वन की राह पकड़ लेते हैं, साधना करते हैं और अन्त में बुद्ध बन जाते हैं । मैं पूछता हूँ, रोगी या वृद्ध या मृतक को देखना अपने में कोई विलक्षण घटना है ? सुबह से शाम तक इस तरह के दृश्य अनेक बार देखे जाते हैं । पर, वैराग्य किसे होता है? चमड़े की आँख से नहीं; चिन्तन की आँख से जो देखता है । सिद्धार्थ ने चिन्तन की आँख से देखा और वह संसार का महान पुरुष बुद्ध हो गया । मिथिलानरेश 'नमि' दाहज्वर से पीड़ित हैं । रानियाँ दाह शमन के हेतु चन्दन घिस रही हैं । स्वर्ण कंकण बज रहे हैं | शोर सुहाता नहीं है राजा को । हाथों में रानियाँ एक-एक कंकण रखकर अन्य सब कंकण उतार देती हैं । चन्दन अब भी घिसा जा रहा है, पर, आवाज नहीं है । अकेला कंकण किस से टकराये ? टकराये नहीं तो बजे कैसे ? ' नमि' इस साधारण-सी घटना पर से जागृत हो जाते हैं, प्रत्येक बुद्धों के इतिहास में अंकित हो जाते हैं । बोध हो जाता है कि संघर्ष द्वन्द्व में से जन्म लेता है । अकेला सुखी है, शान्त है । 'एगोहं नत्थि मे कोई ।' (१७९) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001306
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size13 MB
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