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जीवन का मूलतत्त्व है शुभाशा
मानव की जीवनयात्रा में आशा का विलक्षण महत्त्व है । यह वह प्राणवान ज्योति है, जो जीवन की अन्धकाराच्छन्न कालरात्रि में भी उज्ज्वल प्रकाश विकीर्ण करती है, और निराशा के क्षणों में मूर्च्छित निस्तेज हुए मन को नया जीवन देती है ।
जब व्यक्ति के मन को निराशा का अन्धेरा घेरता है, हीन भावना का दंश जीवन में से कर्म का रस चूस लेता है, जब जीवित व्यक्ति भी मृत हो जाता है । जीवित शव मृत शव से अधिक भयंकर होता है । यह जीवित शव जब सड़ने लगता है, तब वह असहय भीषण दुर्गन्ध फैलती है कि आस पास का सारा वातावरण नरक बन जाता है । निराशा से रोती आँखों में नरक है, तो आशा और विश्वास से चमकती आँखों में स्वर्ग है ।
जीवन और मृत्यु की परिभाषा करते हुए एक मनीषी ने ठीक ही कहा है कि आशा जीवन है, और निराशा मृत्यु | आशा मृत, मूर्च्छित व्यक्ति में भी जीवनरस का संचार करती है । यह आशा ही है जो निराशा के कारण जीते जी ही मृत्यु के मुख में पहुँचते लोगों को नया जीवन, नया प्राण देकर कर्म की समरभूमि में साहसी वीर योद्धा की तरह जूझने के लिए खड़ा कर देती है । जहाँ आशा है, आत्मवत्ता है, वहाँ नरक में भी स्वर्ग उतर आता है । इसके विपरीत जहाँ निराशा है, आत्महीनता है, वहाँ स्वर्ग भी नरक में परिवर्तित हो जाता है । निराशा अपने हाथों अपनी हत्या करना है | संसार में दूसरों के द्वारा व्यक्तियों की इतनी हत्या नहीं हुई है, जितनी कि निराश व्यक्तियों ने स्वयं अपने हाथों अपने अस्तित्व को मिट्टी में मिलाकर अपनी हत्या की है।
राक्षसराज रावण की कैद में है पवित्रता की प्रतिमूर्ति देवी सीता चारों ओर भयमूर्ति राक्षसों का नंगी तलवार लिए पहरा है । राक्षसों की क्रूर
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