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________________ रह जाते हैं । ऐसे नियमोपनियमों को बदलना ही होगा, समाप्त करना ही होगा । मृत परम्पराओं को ढोते रहने से समाज के कर्मशरीर में नया प्राण, नया जीवन, नया चैतन्य नहीं आ सकता । समाज में अभिनव सृजनशील सौन्दर्य विकसित करने के लिए क्रमागत जीर्ण परम्पराओं के पुराने पत्तों का मोह-ममत्व त्यागना ही होगा | सड़े-गले आचार-विचारों को विदा करने के लिए हृदय को मुक्तसाहसी बनाना होगा, समाजहित की दृष्टि से सोचना-विचारना होगा। __ जो समाज समय की गति के साथ आगे नहीं बढता है, सजीव भविष्य को नहीं अपनाता है, मृत अतीत से ही चिपका बैठा रहता है, वह नष्ट हो जाता है । सांस्कृतिक चेतना का मूल यदि प्राणवान् है, तो हम इन पत्तों के जाने पर क्यों रोएँ ? इनसे भी अच्छे और उपयोगी नये नियमोपनियम बनाएँगे, और समाज की गरिमा में चार चाँद लगाएँगे | रोए वह, जो अपनी सृजनशक्ति खो बैठा है, जिसे नया कुछ करने और पाने का विश्वास नहीं रहा है । जो मीठे पानी के लिए नया कुँआ खोद सकता है, दूर से भी मीठा पानी लाने की हिम्मत रखता है, वह घर के आँगन में अपने बाप-दादाओं के खुदवाये हुए कुए का खारा पानी क्यों पीए ? बाप-दादाओं की प्रतिष्ठा उनके बनाए खारे कुँए का पानी पीने में नहीं है, बल्कि अपने बलविक्रम पर, अपने बौद्धिक चातुर्य पर मीठे पानी के नये स्रोत उपलब्ध करने में है। समाज का गौरव हर किन्हीं पुराने नियमों को पकड़े रखने में नहीं है, अपितु जीवनविकासकारी नये नियमों के सृजन में है । जो वर्तमान अतीत हो चुका है, उसे अब भविष्य नहीं बनाया जा सकतः । हर आने वाला नया सांस भविष्य में है । और उसी नये भविष्य में समाज को जीना है । तब क्यों नहीं, समाज को आने वाले भविष्य के अनुरूप ढाला जाए । श्रमण भगवान महावीर का दर्शन कहता है, बदलने योग्य नियमों को द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव को लक्ष्य में रखकर यथावसर बदला भी जा सकता है । व्यवहार क्षेत्र में अपरिवर्तनीय जैसा कुछ भी तो नहीं है । फरवरी १९७४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001306
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size13 MB
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