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और तुलसीदास' भी क्या थे । पत्नी के मोह में अन्धे ! छत पर से नीचे लटकते सर्प को रस्सी समझा, पकड़कर अँधेरी रात में मायके गई पत्नी के पास पहुँच गए । कहते हैं बीच में तेजधार से बहने वाली नदी को एक बहते मुर्दे पर बैठकर पार किया था, पत्नी के पास जाने के लिए । कौन जानता था, यह कामान्ध युवक तुलसी संत तुलसीदास बन जाएगा । लगी पत्नी की फटकार । जैसी नीत हराम में है, वैसी राम में हो जाये, तो बेड़ा न पार हो जाए ? शर्म नहीं आती इस तरह मायके में भी मेरा पीछा करते । बस, अब क्या था ? ठीक निशाने पर चोट लगी । वह दिन है कि तुलसी फिर मायाजाल में न उलझे । 'रामचरित मानस का यह महान गायक सन्त राजमहलों से लेकर झोंपड़ियों तक जन-जन का जाना पहचाना संत । एक किनारे से दूसरे किनारे कैसे इतनी जल्दी पहुँच गया ? एक दिन अशुभ की वह तीव्र धारा थी, जो शुभ में उस से भी अधिक तीव्र रूप में प्रवाहित हो गयी । तीव्रता तो थी ही, बस, उसे मोड़ चाहिए था । और वह मोड़ उसे मिल गया । प्रवाह में तीव्रता तो उन के संस्कार में थी ही ।
नारी जाति के भी कितने महान उदाहरण हैं इस सन्दर्भ में । यादव राजकन्या कुन्ती, कौमार्य अवस्था में ही भटक गई । कर्ण के रूप में अवैध संतान मिल गई तो अपने ही हाथों नवजात पुत्र को नदी में बहा दिया । गलती पर गलती । किन्तु भारतीय इतिहास में यही भटकी हुई पथभ्रष्ट लड़की एक दिन पवित्र एवं उच्च जीवन के रूप में पूजित हुई । जैन और वैदिक पुराण उसके निर्मल यशोगान से अनुगुंजित हैं ।
द्रौपदी क्या है ? एक साथ पाँच पतियों की वह पत्नी है, जो सामाजिक न्याय से अवैध है । किन्तु यह महानारी वह नारी है, जिसका पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण भी सम्मान करते हैं । महर्षि व्यास जिसकी गुणगाथा महाभारत में मुक्तमन से गाते हैं । जैन इतिहास वर्तमान कालचक्र की १६ महान पवित्र एवं आदर्श नारियों में उसकी गणना करता है । कितनी विलक्षण उच्चता, महत्ता है द्रौपदी की ।
कोशा एक वेश्या ! महर्षि स्थूलभद्र के सत्संग से कितनी ऊँचाई पर पहुँच गई । जीवन ही बदल गया । और भी रुक्मिणी, सत्यवती आदि अनेक
१ कुछ इतिहासकारों की दृष्टि में यह वृत्त कृष्णभक्त बिल्वमंगल से सम्बन्धित है।
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