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पूर्व भारत के श्रावस्ती जनपद का मानव देहधारी साक्षात् दैत्य । परन्तु लग गया तथागत बुद्ध का उपदेश | बदल गया जीवन । बन गया सर्वसंगत्यागी महान परिव्राजक | शुभ में आया तो कुछ ही क्षणों में दैत्य से देव बन गया ।
राजगृह के मगध प्रदेश का महाश्रमण जैनाचार्य प्रभव भी तो एक दिन ऐसा ही प्रलय का रूप लिए दस्युराज था, पाँच सौ दस्युओं का अधिनायक |
और जम्बूकुमार के संग में आकर बदला तो मध्य रात्रि में लूटने के लिए आया हुआ भयंकर दस्यु, प्रात:काल जिन चरणों का उपासक हो जाता है, जैन इतिहास का शतशत वन्दनीय भिक्षु !
नन्द साम्राज्य के महामंत्री शकटार का यशस्वी पुत्र स्थूलभद्र कोशा वेश्या के चंगुल में | उस रूपसी का यह मायाजाल कि दो चार वर्ष नहीं; पूरे बारह वर्ष तक पड़ा रहा उसकी मोहपाश में | भूल गया माँ बाप को, परिवार को, प्राणप्रिया पत्नी को, राज्य को, राज्य की अपनी पद प्रतिष्ठा को । और जब विवेक तथा वैराग्य का चांटा लगा तो तत्काल निकल पड़ा श्रमण भगवान महावीर के निर्दिष्ट साधना पथ पर । बन गया भिक्षु, आचार्य संभूतिविजय के श्री चरणों में । एक दिन काम का दासानुदास था विलासी युवक । और अब बन गया काम का विजेता | वर्षाकाल के चार महीने पूर्वपरिचिता एवं अनुरक्ता वेश्या के यहाँ गुजार देता है, जल में कमल की तरह निर्लिप्त ! इतना ही नहीं, स्थूलभद्र की वह दिव्य निर्मल वाणी कि कोशा भी जिनधर्म की श्राविका बन जाती है, आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर लेती है । यह है शुभ का धारावाही विस्तार ! विलक्षण अचिन्त्य विस्तार !
वैदिक परंपरा के महर्षि वाल्मीकि आप जानते हैं जीवन के पूर्व भाग में क्या थे-चोर, दस्यु, हत्यारा और अधम पापाचारी । निर्दोष राहगीरों के खून से हाथ सने रहते थे, उसके हाथ। एक दिन देवर्षि नारद का समागम। बोध लग गया सोई आत्मा को | जाग उठी जन्म-जन्म की सोई हुई अध्यात्म चेतना । उसी क्रूर हृदय में करुणा की शत-शत धाराएँ बह निकलीं । क्रूर व्याध के द्वारा एक दिन क्रौंच पक्षी का वध देखकर उनका अन्तर्मन इतना व्यथित हुआ कि रामायण महाकाव्य का उनके द्वारा सहज ही सृजन हो गया । रामायण करुणरस से आकण्ठ छलकता शब्दपात्र । यह था महामानव का वह जीवन, जो क्या से क्या हो गया ।
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