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________________ विराट आत्माओं की विलक्षणता महामानव कर्मशक्ति केन्द्र होते हैं। उनके अन्तर्मन में कुछ कर गुजरने के उत्साह का, उल्लास का एक विराट् सागर हर क्षण लहराता रहता है। यदि ये अशुभ की ओर प्रवाहित हो जाते हैं तो अशुभ के किनारे पर ही पहुँच कर दम लेते हैं, बीच में कहीं रुकते नहीं हैं। धनार्जन हो, राग हो, द्वेष हो, संघर्ष हो, हिंसा हो, भोग हो, कैसा भी अशुभ हो सर्वत्र अति ही दिखाई देती है इन लोगों में । __ और यदि ये शुभ की ओर मोड़ लेते हैं तो इधर भी कमाल ही कर दिखाते हैं | शुभ के सर्वोच्च शिखर पर खड़े होकर अपनी कीर्तिपताका फहरा देते हैं, जयजयकारों के साथ | क्या मजाल, बीच में कहीं बैठ जाएँ, या कठिनाइयों से घबराकर वापस लौट जाएँ । दान हो, दया हो, सेवा हो, तप हो, त्याग हो, कोई भी शुभ हो, आप उन्हें सर्वत्र अग्रिम मोर्चे पर खड़ा पाएँगे । इन महामानवों के पास गणित नहीं होता कि इतना किया तो इतना पाया । इतना करते तो इतना पाते | यह मिला, यह न मिला । ये सब विकल्प मानवों के पास होते हैं, अति मानवों के पास नहीं । धुन के धनी कहाँ बगल में गणित का बहीखाता लिए फिरते हैं । वे तो जिघर चल पड़े चल पड़े । जिधर लग गए लग गए ! भारत के प्रथम चक्रवर्ती भरत क्या थे, कैसे थे । जीवन का कितना अधिक समय गुजरा संघर्षों में, द्वन्द्वों में | देखते हैं, वे यहाँ एक किनारे पर खड़े हैं | कितना विशाल साम्राज्य ! कितना विराट सैन्य ! कितना अन्त:पुर में सुन्दरियों का जमघट ! और बदले तो इतना बदले कि एक अन्तर्मुहूर्त में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001306
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size13 MB
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