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लौट आना, स्थिर हो जाना, पर्युषण का आध्यात्मिक अर्थ है । इस आध्यात्मिक अर्थ में यह केवल साधु-साध्वी के संघ से ही सम्बन्धित न रहकर मानवमात्र से सम्बन्धित पर्व हो गया है । और इस तरह यह केवल भारत का ही नहीं, अखिल विश्व का पर्व बन जाता है । इस पर किसी एक सम्प्रदायविशेष का अधिकार नहीं है । यह सर्वहित में है, अत: सार्वजनिक है । कोई भी द्वीप हो, देश हो; कोई भी जाति हो, कुल हो; कोई भी धर्म हो, पंथ हो; कोई भी बालक हो, युवा हो, वृद्ध हो, कोई भी गृहत्यागी भिक्षु हो या गृहस्थ हो, अर्न्तजीवन की विकृतियों का परिमार्जन एवं क्षमा, मैत्री आदि सद्गुणों का अर्जन सबके लिए आवश्यक है; अत: पर्युषण पर्व सबका है और सब पर्युषण पर्व के हैं ।
हर नर में नारायण हैं, हर जन में जिन है; उसे सुप्त से जगाना, अव्यक्त से व्यक्त करना ही पर्युषण की साधना है । यह अन्तर्जगत् का वह दिव्य प्रकाश है, जो हर किसी को अपेक्षित है ।
अगस्त १९७७
(१५९)
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