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विश्वमंगल का संदेश वाहक पर्युषण पर्व
भारत पर्वो का देश है । यहाँ हर दिन एक पर्व है, हर रात एक पर्व है । कुछ दिन तो ऐसे भी हैं, जब एक दिन में कितने ही पर्व आ जाते हैं, एक तरह पर्यों का जमघट ही हो जाता है । इसके लिए जैन, वैदिक, बौद्ध आदि नई पुरानी परम्पराओं के पुराण तथा व्रतविधान के ग्रन्थ दृष्टव्य हैं ।
भारत के पर्व कई विभागों में विभक्त हैं | मूलत: पर्वो के दो रूप हैं, लौकिक तथा लोकोत्तरलोकोत्तर, धार्मिक पर्व होते हैं, और लौकिक पर्यों के अनेक रूप होते हैं जिनमें कुछ पर्व पारिवारिक होते हैं, तो कुछ सामाजिक, कुछ राष्ट्रीय होते हैं । जीवन के हर अंग, हर मोड़ पर एक पर्व है ।
__ पर्व का मूल सुख है, दु:खनिवृत्ति है । लोक तथा लोकोत्तर जीवन के हर पर्यों में सर्वत्र यही भावधारा काम कर रही है । अनेक पारिवारिक और सामाजिक पर्यों में परिवार तथा समाज के सुख की कामना निहित है, और दु:खमुक्ति की भावना अनुगुंजित है । राष्ट्रीय पर्यों में भी अधिकतर महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं का सुखद रस प्रवाहित होता है । धार्मिक पर्यों में तो विकासजन्य दु:खों की निवृत्ति और आध्यात्मिक निराबाध आनन्द की प्राप्ति का स्वर स्पष्टत: मुखरित है । यही कारण है कि यहाँ सरस्वती पूजा के पर्व हैं, लक्ष्मी पूजा के पर्व हैं और शक्ति की पूजा के भी अनेक पर्व हैं । सच्चिदानन्द स्वरूप परमतत्त्व परमात्मा, आत्मा और उनके सद्गुणों की उपासना के पर्व भी हैं, जो धार्मिक परम्पराओं की कल्याणकारी देन हैं। इस प्रकार जीवन की हर आन्तरिक और बाहय अपेक्षाओं के पर्व हैं । देह से लेकर अन्तरात्मा तक के पर्व
लोकोत्तर पर्यों में शिरोमणि स्वरूप पर्युषण पर्व भी इन्हीं पर्यों में का
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