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तीव्र होता है कि कलियुग के भीमसेन बने फिरते हैं, राह चलते हर किसी से लड़ाई मोल ले लेते हैं । श्रेष्ठता बल में नहीं है । श्रेष्ठता है बल का जनहित में सदुपयोग करने में | किसी को बहती नदी में डुबोने के लिए फेंक देने में क्या गौरव है ? गौरव है तूफानी नदी में डूबते हुए किसी को बचा लेने में । अपने बल की मार से किसी को रुलाया तो क्या ? मजा तब है, जब किसी रोते को हँसा सकें आप ।
परिवार का मद
बड़े परिवार का भी एक गर्व होता है, और इस पर लोग कहते हैं; जानते हो, मैं अकेला नहीं हूँ। मेरे पीछे मेरा कितना बड़ा परिवार है । तुमने जरा भी चूँचपड़ की तो तुम्हें एक-एक को मार कर भूस बना दिया जायेगा । फिर कोई रोने वाला भी नहीं मिलेगा कहीं तुम्हें । इस अज्ञानी आत्माओं को पता नहीं, यह अपना परिवार कबतक अपना है। जब तक पुण्य का उदय है, तभी तक अपना है । पुण्य क्षीण होने पर तो आत्मजातपुत्र और सहोदर बन्धु भी प्राणघातक शत्रु हो जाते हैं । इतिहास साक्षी है इस सत्य का ।
बड़ा परिवार का क्या महत्त्व है । एक मछली एक साथ सैकड़ों बच्चों को जन्म देती है | कहते हैं, साँपन को एक साथ सैकड़ों अंडे होते हैं। कूकर और सूकर जैसे निम्नस्तरीय पशुओं के कितनी अधिक सन्तानें होती हैं हर वर्ष ! एक कीटाणु चंद ही मिनटों में लाखों करोड़ों कीटाणुओं का पिता हो जाता है । बन्दरों, हिरनों और अन्य अनेक जंगली जानवरों के झुंड के झुंड फिरते हैं। क्या हो जाता है इससे ? रावण का कितना बड़ा परिवार था ? पर, क्या परिणाम आया इस बड़े परिवार का ? यादव जाति का कितना बड़ा विस्तार! फिर कितना भीषण संहार ! आपस में ही अपने दुर्व्यसनों के कारण लड़झगड़ कर समाप्त हो गये । एक भी अच्छी सदाचारी संतान हो, तो ठीक है । चन्द्रमा एक ही गगन में आता है तो सारे भूमण्डल को प्रकाशित कर देता है, न च तारा सहस्रशः ।' महावीर कहते हैं: " निर्मल चरित्र के आलोक में अकेला विचरण करना ही अच्छा है, दुराचारी दुर्व्यसनी लोगों की भीड़ के साथ से तो । "
रूप का मद रूप का अहम् भी व्यक्ति को बहुत परेशान करता है । चमड़े का रंग
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