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________________ जरा साफ हुआ कि आदमी आसमान में उड़ने लगता है । रूप का अभिमानी व्यक्ति धूप से बचकर चलता है, धूल से दूर भागता है । गर्मी, सर्दी, वर्षा सबसे परेशान रहता है । ऐसे लोग समय पर किसी भी सेवा या सत्कर्म में अपने को झोंक नहीं सकते । उन्हें हर क्षण अपने उजले रंग के काला पड़ जाने की चिन्ता रहती है । कितना अज्ञान है, इस रूप के अन्धों का ? यह नहीं देख पाते कि इस उजली चादर के नीचे कितनी भयंकर गन्दगी छिपी पड़ी है । तन में कहीं भी एक फुन्सी उभर आती है, पस पड़ जाती है, तो उस पर मक्खियाँ भिनभिनाने लगती है। साफ स्वच्छ रहना अच्छा है । पर, अपने को कामदेव के रूप में ढालने का हास्यास्पद प्रयत्न किया जाये । जिन्हें जन-सेवा के क्षेत्र में काम करना है, उन्हें तन की सुन्दरता के इस मोह से अमुक अंश में मुक्त होना ही होगा। सेवा का मद सेवा का अहम् भी व्यक्ति को कहीं का नहीं रख छोड़ता | मैंने ऐसे अनेक व्यक्तियों को देखा है, जो कभी किसी को थोड़ा बहुत सहयोग दे देते हैं, तो हर जगह उसका खुद ही ढोल बजाते फिरते हैं । यह अच्छे काम की नहीं, अच्छे नाम की भूख है। इस भूख की पूर्ति होना बड़ी मुश्किल बात है । पता नहीं, क्या हो गया है आज की दुनिया को ! 'नेकी कर कूवे में डाल ' का पुराना सिद्धान्त तो वस्तुत: किसी अन्धकूप में ही डाल दिया गया है । सेवा क्या करते हैं, सेवा के नाम पर दूसरों का अपमान करते हैं । कितनी ही बार अपने कुछ लोगों को यह कहते सुना होगा: " अरे भाई साहब, क्या बताऊँ । मैं ही था, जो उसे बर्बाद होने से बचा सका । मैं न होता तो सचमुच ही उसका बेड़ा गर्क हो गया होता । वह बच सकता था भला ! कोई भी तो नहीं था उसे तब बचाने वाला ।" कितना अहम् है मनुष्य को अपने तुच्छ से सेवा कर्म का । ऐसे लोगों को पता होना चाहिए, हर आदमी का अपना भाग्य होता है । उसका अपना भाग्य ही मूल में बचानेवाला है । तुम तो एक निमित्त बन गये हो । गंगा को आना होता है, भगीरथ को लाने का यश मिल जाता है । और यह भी क्या पता कि तूने इस सेवा के रूप में पूर्व जन्म का उससे लिया गया कोई अपना पुराना ऋण ही चुकाया हो तो ! भारत का दर्शन (१४७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001306
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size13 MB
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