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________________ आज एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र को ध्वस्त करने पर तुला है । आये दिन विश्वयुद्ध होने की ललकारें सुनाई देती हैं | अमरीका का शस्त्र-निर्माण के लिए बजट है ७० अरब का । हैरान हैं हम कि ये मौत के दैत्य विश्व की क्या दशा करने की सोच रहे हैं ? क्या ये लोग संसार को मरघट बनायेंगे, और स्वयं प्रेत बनकर उसमें नंगे नाचेंगे ? अगर सचमुच में कोई आदमी है और उसके पास आदमी का ही धड़कता दिल है, तो कम से कम वह तो इतना क्रूर , इतना निर्दय, इतना खूखार राक्षस नहीं हो सकता । एक धर्मगुरु दूसरे धर्मगुरु की निन्दा में, अपभ्राजना में लगा है । एक व्यापारी दूसरे व्यापारी के लाभ को सहन नहीं कर पा रहा है । एक विद्वान का यश दूसरे विद्वान के लिए हृदय को छेद देने वाला भयंकर भाला है । राजकीय क्षेत्र की भी यही दुर्दशा है । टांग पकड़कर एक दूसरे को घसीट रहे हैं । राजनीतिक दल और नेता, केवल शासन की क्षणभंगुर कुर्सी हथियाने के लिए । इधर जबान पर प्रजा के कल्याण का नारा बुलन्द है, और उधर अन्दर मनमें अपने तुच्छ स्वार्थ के जोड़-तोड़ का कुचक्र है । अगर आदमी को आदमी के रूप में जिन्दा रहना है तो घृणा और द्वेष तथा वैर और विरोध के हलाहल जहर को हृदय से निकाल कर दूर फेंकना होगा। साथ ही सूखती हुई प्रेमामृत की विश्वकल्याणी धारा को पुनः जन-जन में प्रवाहित करना होगा । हृदय में प्रेम का अक्षय स्रोत है । बिना किसी जाति, राष्ट्र, धर्म और समाज का भेदभाव किए, जन-जन को प्रेम का अमृत रस पिलाये जाओ । कोई कमी नहीं है । कमी है केवल उदात्त संकल्प की, विराट मन की, प्रेम तो प्रेम के मुक्त दान में ही विस्तार पाता है, प्रेम के दान में ही प्रेम का आदान है । प्रेम का दिव्य संगीत जब हर आदमी के दिल में ध्वनित होगा, नि:स्वार्थ और निष्काम, तभी धरती पर आकाश का स्वर्ग उतरेगा, तभी धरती के सूखे उपवन में सुख शान्ति एवं आनन्द के पुष्प खिलेंगे । प्रभु महावीर का विश्व-मंगल सन्देश नगर-नगर में, गली-गली, घर-घर में गूंजना चाहिए कि ' वेरं मज्झं न केणई '- ' मेरा किसी के साथ कोई ६. नहीं है, विरोध नहीं है ।" मित्ती मे सब भूएसु ' सब प्राणियों के साथ मेरी निश्छल एवं निर्मल मैत्री है, पवित्रबन्धुता है । यह वह प्रेम गीत है, जिसका स्वर ठीक तरह यदि मानव-हृदय में मुखरित हो जाए तो कोई पराया (१२८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001306
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size13 MB
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