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वे मुस्कराकर उत्तर देती - “पाँच शिलिंग और बहुमूल्यवान संकल्प |"
और आज देखा जा सकता है, दूर-दूर तक के प्रदेशों में, मदर टेरेसा के अनाथ-आश्रमों की एक लम्बी शृंखला है । शानदार, व्यवस्थित, साधन-सम्पन्न, यशस्वी अनाथाश्रम । हजारों अनाथ बालक-बालिकाओं के लिए धरती पर के स्वर्ग धाम !
"क्या कमी तुम्हें है त्रिभुवन में यदि दायित्व निबाहो । सब कुछ करने की क्षमता है, यदि तुम करना चाहो ।। "
मनुष्य अमुक कार्य करने का निश्चय करता है । परन्तु समय पर धूप पड़ने लगती है, या लगने लगती है, वर्षा होने लगती है, और निश्चय बिखर जाता है, कि अच्छा, रहने दो । आज नहीं, कल करेंगे । बस, आज-कल पर गया कि फिर वह कल आता ही नहीं है । आता भी है तो लड़खड़ाते-गिरते-पड़ते कदमों से । इसका परिणाम आता है, कि उसका आना न आना बराबर । यह अपने हाथों अपनी हत्या है । एक बार संकल्प टूटा कि बस, आदमी कहीं का नहीं रहता । संकल्प को दावानल होना चाहिए, दीपक की कैंप-कँपाती 'लौ' नहीं। दीपक की लौ हवा के एक हल्के झोंके से बुझ जाती है, जबकि दावानल (वन की आग) तूफानी हवाओं के टकराने से और अधिक भड़कता है, फैलता है, प्रचण्ड होता है । दृढ़ संकल्प मन का दावानल है, जो विघ्न बाधाओं के तूफानों में अधिकाधिक तीव्र एवं दुर्घर्ष हो जाता है | कुछ भी हो जाए, वह टूटता नहीं है लक्ष्य पर पहुँच कर ही विश्राम लेता है । जो चेतना इधर-उधर में न बिखरे, लक्ष्य पर केन्द्रित रहे, वही श्रद्धा है, निष्ठा है, और संकल्प है । मन में यों ही कोई विचारों का बुलबुला उठा, और बस कुछ ही क्षणों में फूट गया, तो वह संकल्प नहीं है । ऐसे अस्थिर विचारों से न कभी कुछ हुआ है, और न होगा ।
अज्ञानता के अँधेरे क्षणों में कभी कुछ गलत आदतें इन्सान को पकड़ लेती हैं, बुराइयाँ अन्दर में डेरा डाल लेती हैं | समय पर कभी किसी सद्गुरु का उपदेश मिलता है, या कभी कोई ठोकर लगती है, तो होश आता है । मनुष्य बुरी आदत छोड़ना चाहता है । पर, यह कैसी बात है, कि छूटती नहीं है ।
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