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दुर्बलताओं के सघन अन्धकार को तोड़ कर क्यों नहीं ज्योतिर्मय हो पाता ? उत्तर स्पष्ट है, कि जब तक दृढ़ संकल्प शक्ति नहीं जागृत होती है, आत्म-श्रद्धा का बल स्फुरित नहीं होता है, तब तक दुर्बलताओं से मुक्ति नहीं हो सकती । यदि संसार में कुछ बनना है, यदि कुछ कालजयी सत्कर्म करना है, मन के सुनहले स्वप्नों को साकार बनाना है, तो कर्तृत्व की संकल्प शक्ति को वज्रवत् सुदृढ़ करना होगा ।
कुछ लोग कहा करते हैं काम, पर हो नहीं पाता । कोई न ही रह जाता है ।"
" क्या करें । करना चाहते हैं कुछ अच्छा कोई विघ्न आ जाता है, और काम बीच में
मैं कहता हूँ - "यह सब बचाव की अर्थहीन बातें हैं । संकल्पहीन अधूरे मन से जो काम शुरू किए जाते हैं, वे कैसे पूर्ण हो सकते हैं । कर्म के मूल में दृढ श्रद्धा होनी चाहिए, प्राणों तक की आहुति देने की तत्परता होनी चाहिए, फिर देखिए, सफलता और सिद्धि चरण स्पर्श करती है या नहीं ?
"वह कौन-सा उकदा है, जो वो हो नहीं सकता; हिम्मत करे तो इन्सां, क्या हो नहीं सकता ।"
आत्मा में अनन्त शक्ति का स्रोत प्रवहमान है । वह आलस्य, तंद्रा, कुण्ठा, संत्रास एवं हीन भावना के नीचे दबा पड़ा है । मैं कुछ नहीं, बस यही सबसे बड़ा पाप है और यही पाप है, जो समय पर सत्पथ पर कुछ करने नहीं देता, चलने नहीं देता । दृढ़ता के साथ तनकर कुछ अच्छा करने के लिए खड़े हो जाओ, फिर देखो कि निर्धारित संकल्प पूर्ण होता है या नहीं ? नहीं का प्रश्न ही नहीं है । पूर्ण होगा, होगा, अवश्य होगा |
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सुना है, मदर टेरेसा के पास सम्पत्ति के रूप में केवल इनेगिने पाँच शिलिंग थे, और वे यत्र-तत्र कितने ही अनाथालयों की स्थापना का विचार कर रहीं थीं, योजना बना रही थीं । लोग बातें सुनते तो हँसते और पूछते - " कितनी पूँजी है, आपके पास ?
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