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बार-बार संकल्प करता है, बार-बार तोड़ता है । आखिर थक जाता है, रोने बैठ जाता है । क्या बात है, यह ? कुछ बात नहीं है । ऊपर के मन में बुराई का विद्रोह है, इन्कार है, किन्तु अन्दर के अवचेतन मन में बुराई की मूक स्वीकृति है । अन्तर्मन यदि बलपूर्वक बुराई को ठुकरा दे, अस्वीकृत कर दे, तो फिर मजाल है, कि साधक एक कदम भी बुराई की ओर आकृष्ट हो जाए ! अस्तु, एक क्षण के लिए भी बुराई को सहन न करो । कोई भी बुरा काम शरीर से, वाणी से, मन से न बने - इसलिए पूर्ण संकल्प के साथ सचेष्ट रहो । यदि कभी भूल से कहीं कोई स्खलना हो भी जाए तो प्रबल इच्छा और पुरुषार्थ के साथ प्रतिकार के लिए खड़े हो जाओ । विजय तुम्हारी निश्चित है । 'हाँ' या 'ना' की तीव्र इच्छा शक्ति ही मँझधार में डूबते व्यक्ति को तट पर पहुँचाती है, भटकते यात्री को मंजिल देती है ।
बुराई का प्रतिकार करने के लिए स्वयं स्वयं का चिकित्सक बनिए, स्वयं स्वयं का शिक्षक एवं निर्देशक बनिए । दूसरों की अपेक्षा अपने आप अपने को प्रशिक्षित करना अधिक अच्छा होता है, उसके अधिक सुखद परिणाम आते हैं। अतः प्रतिदिन प्रातः काल सूर्योदय की प्रकाश-वेला में और सायंकाल शान्त नीरव निशा के क्षणों में यह संकल्प दुहराओ, कि मुझ में आत्म-शक्ति का अक्षय और अनन्त कोष है । एक विराट सागर लहरा रहा है, कर्तृत्व का । मैं बुरी आदतों को छोड़ने की और अच्छी आदतों को अपनाने की अदम्य क्षमता रखता हूँ । मुझ में इतनी आध्यामिक शक्ति निहित है, कि मैं बड़ी से बड़ी और पुरानी से पुरानी बुराई को छोड़ सकता हूँ । मैं अन्धकार में सूर्य हूँ । प्रकाश होगा ही । होगा क्या 'हो रहा है, हो रहा है ।'
प्रतिदिन के शुभ संकल्प की यह प्रक्रिया जीवन परिवर्तन का महामंत्र है, अपराजित तंत्र है । प्रयोग करके देखा जाए | क्या है ?
दिसम्बर १९७६
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