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महावीर और बुद्ध की जीवन गाथायें भी कण्टकाकीर्ण पथ पर से गुजरने की गाथाएँ हैं । ये विराट भगवदात्माएँ कठोर साधना की जलती आग में तपकर ही पवित्र हुए हैं । कितने घोर परिषह और उपसर्ग सहन किए हैं, अपनी साधना की यात्रा में !
जीवन संगम है । यहाँ हर क्षण जूझना पड़ता है, कष्टों एवं संघर्षों के दावानल में तपना पड़ता है | कल का मुख आज के दु:ख के पीछे खड़ा है । अत: दु:ख से प्रथम भेंट होना जरूरी है । अगर दु:ख से डर कर भागे नहीं, तो समय पर दु:ख के पीछे छिपे हुए सुख के दर्शन भी हो जाएँगे । मुझे एक बार गरीब घराने का एक शिक्षित युवक मिला था । इधर-उधर बहुत भटका, पर कहीं नौकरी नहीं मिली और न कोई धंदा । रोटियों का मुहताज | इतना निराश, कि रेल से कट कर मरने की सोच रहा था। मैंने उसे धैर्य दिया, साहस बँधाया। समझाया, कि मरने से क्या होगा ? क्या तुझे पता है, कि मरने के बाद का जीवन तेरे इस वर्तमान जीवन से अच्छा होगा | अगले जन्म में तू कहीं का सम्राट या धनकुबेर ही बनने वाला है, क्या यह निश्चित है? क्या इससे भी खराब जीवन नहीं मिल जाएगा ? पतझर ही क्यों देखता है ? पतझर के बाद वसन्त भी तो आता है । रात के बाद दिन भी तो आता है । अपने भविष्य के प्रति भरोसा रख । नर जन्म यों ही विष खाकर, जल में डूबकर या रेल के नीचे कट कर मरने के लिए नहीं है । एक वीर पुरुष की तरह गरीबी से, गरीबी के दुःख से संघर्ष करो | आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों जीवन की दुःस्थिति पर विजय प्राप्त किया जा सकता है । सुख, दु:ख दोनों में से कोई स्थायी नहीं है । राजस्थानी कहावत है - बारह वर्ष में तो कुरडी (गाँव के बाहर पड़ा रहने वाला कूडे कचरे का ढेर) का भाग्य भी जग जाता है । चक्र की तरह सुख दुःख बदलते रहते हैं । घूमते रहते हैं । 'चक्रवत् परिवर्तन्ते दुःखानि च सुखानि च ।'
युवक की प्राण शक्ति लौट आई । आँखों में आशा की ज्योति पुनः दीप्तिमती हो उठी । बोला - "भगवन ! आशीर्वाद चाहिए आपका | मैं जीवन की अन्तिम साँस तक अपने अभ्युत्थान के लिए संघर्ष करूँगा ।" मैंने कहा - "आशीर्वाद हर श्रद्धा को साथ है ।"भगवान महावीर ने कहा है - 'जीओ, शान के साथ जीओ । साथ ही दूसरों को भी जीवित रहने के लिए हर संभव सहयोग दो । एक बोल है, याद रखना :
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