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फूल सुई से बिंधकर, धागे में पिरोये जाकर ही माला का रूप लेते हैं और मन्दिर के किसी महनीय देव या उच्च पदस्थ मानव के कण्ठ में सुशोभित होते हैं।
दु:ख और कष्ट, पीडा और बाधा मानव की अन्त: शक्ति के परीक्षण की कसौटी है, जो इस कसौटी पर खरा उतर जाता है, संकटों से पराजित नहीं होता है, कष्टों की आग में काला नहीं पड़ता है, वही जीवन की सच्ची सार्थकता प्राप्त करता है ।
दुःखों के आने पर कभी गलत रास्ता न पकड़ो । अपने मन, वाणी और कर्म की निर्मलता को बरकरार रखो ! यही चरित्र है, जो मानव को कालजयी बनाता है, युग-युगान्तर तक भविष्य की प्रजा के लिए उसे आदर्श रूप में उपस्थित करता रहता है । अन्धकार के क्षणों में भटकते मानव को यह आदर्श चरित्र ही प्रकाश देते हैं ।
मालूम है, राम ने कितने कष्ट सहे हैं । चौदह वर्ष का वनवास, एक राजकुमार को । आज आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि ऐसा कैसे हो गया ? पुष्प सी सुकोमल राजकुमारी सीता पति के चरणों का अनुसरण करती है, वन के भयंकर कष्टों को प्रसन्नता से सहन करती है । तभी तो वह भारतीय इतिहास की महानारी है भगवती सीता | रावण के यहाँ इतने भीषण कष्ट सहन किए, कि कथा के श्रवण मात्र से शरीर का रोम-रोम काँप उठता है । कितना भय, प्रलोभन! पर, सीता है कि वह अपने पवित्रता के पथ से न भय से विचलित होती है, न सुख सुविधा एवं भोग-विलास के रंगीन प्रलोभनों से | तभी तो वह जगज्जननी है, जगदम्बा है ।
कृष्ण का जीवन भी प्रारंभ से ही दु:खों की, कष्टों की दहकती आग में तपता रहा है । राजकुमार होकर भी ग्वालों में पलता है, ग्वालों के साथ जंगल में गायें चराता है । एक दिन पूर्वजों की वंश परंपरागत व्रज-भूमि को छोड़ कर सुदूर अज्ञात प्रदेश सौराष्ट्र में समुद्र तट पर द्वारिका का निर्माण किया जाता है, पश्चात् अनेक युद्धों में संघर्षों में जूझना पड़ता है । एक के बाद एक द्वन्द्व ही द्वन्द्व, संघर्ष ही संघर्ष ! आज कोटि-कोटि भक्तों के हृदय का देवता विपत्तियों के कितने भयंकर वात्याचक्रों में से गुजरा है, तब कहीं विश्व-वन्दनीय हुआ है, वह!
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