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________________ “खुश रहना , खुश रखना, जीना और जिलाना नाथ, मेरे जीवन का बस, एक यही हो गाना । " कुछ वर्षों बाद वही युवक मुझे फिर मिला । उसको एक अच्छी नौकरी मिल गई थी । जल्दी ही तरक्की पाकर ऊँचे पद पर पहुँच गया था । उसी के शब्दों में अब वह सब तरह सुखी था । समय पर सब ठीक हो जाता है । अपेक्षा है, डगमगाते क्षणों में कुछ देर कदम जमाये रखने की । दुनिया भर से पराजित हो सकते हो, ठोकरें खा सकते हो | कोई हर्ज नहीं है । पर, सावधान ! अपने को अपने से कभी पराजित न होने देना, स्वयं स्वयं को ठोकर न लगाना | निराशा खुद अपने हाथों अपनी हत्या करना है । तुम दु:ख की, अपमान की अभाव की और पराजय की क्षणभंगुर घडियों को यदि मुस्करा कर पचा सको, विघ्न-बाधाओं को एक शूर-वीर विजेता की आवाज में ललकार सको, तो फिर दुनिया की कोई शक्ति नहीं है, जो तुम्हें पराजित कर सके, ठोकर मार कर गिरा सके । आदमी अपनी ही निराशा की, दुर्बलता की ठोकरों से गिरता है । संसार में जहाँ हजारों राजाओं को रंक होते देखा है, तो वहाँ लाखों ही रंकों, दरिद्रों, कंगालों को राजा होते भी देखा है । तुम रंक से राजा होने के इस उज्ज्वल पक्ष को क्यों आँखों से ओझल करते हो? तूफानी प्रवाह में नाव के डूब जाने पर भी नाविक तैरने का उपक्रम करता है, और वह उपक्रम में सफल भी होता है, सकुशल तट पर पहुँच जाता दुःख और वेदना के गर्भ से ही अनेक इतिहास प्रसिद्ध महान कार्यों का जन्म हुआ है । सुख में आदमी सोता है, और दु:ख में जागता है, और जो जागता है, वह पाता है । जागरण में ही मन के सुनहरी स्वप्न रूपायित होते हैं | सुख के समान ही द्वार पर कभी दु:ख आता है, तो उसका भी हँसते दिल-दिमाग से स्वागत करो । वह भी एक मित्र है । सुख से भी अच्छा मित्र । मैंने जो कुछ ऊपर कहा है, उसका यह अर्थ नहीं है, दु:ख और विघ्न-बाधाओं के आगे संघर्ष के अपने हथियार डाल दो, उनका प्रतिकार न करो। (११५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001306
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size13 MB
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