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सही सुख क्या है ?
संसार में अनन्त अनन्त प्राणी हैं । भले ही वे किसी भी र्गात में हों, किसी भी योनि में जन्मे हों और किसी भी जाति में हों । सब प्राणियों की, जीवों की सुख के सम्बन्ध में एक ही तरह की इच्छा, भावना ओर अभिलाषा रहती है। अन्य अनेक प्रकार की विभिन्नताओं के होते हुए भी इस बात में सबके विचारों में, सबकी भावनाओं में एकरूपता है कि सबको सुख प्रिय है । संसार के समस्त प्राणी सुख चाहते हैं, दुःख, पीड़ा एवं कष्ट कोई नहीं चाहता । नरक के जीव बहुत दु:खी हैं । रात-दिन विभिन्न प्रकार के कष्टों का वेदन करते ही हैं । इसलिए उनके मन में हर क्षण सुख पाने की अभिलाषा बनी ही रहती है। तिर्यचं-पशु-पक्षी एवं कीट-पतंग भी दुःखों से बचने के लिए और सुख प्राप्ति की आशा में इधर-उधर भटकते रहते हैं । स्वर्ग में तो अपार वैभव है | भौतिक दृष्टि से सामान्य से सामान्य देव का जीवन भी सम्पन्न है | उसके सामने मानव की सम्पत्ति की कोई तुलना नहीं की जा सकती । फिर भी ईर्ष्या, मान-अपमान एवं प्रतिष्ठा के रोग से वह पीडित है, और उससे छुटकारा पाने के लिए वे अधिक से अधिक सुख चाहते हैं ! मनुष्य-जीवन में कुछ भौतिक साधनों से सम्पन्न हैं, तो कुछ अभावग्रस्त हैं । जिनके पास सुख साधन नहीं है, वे सुख प्राप्त करना चाहते हैं, और जिनके पास है, वे और अधिक सुख पाने की अभिलाषा रखते हैं । इस प्रकार संसार में एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं मिलेगा जो सुख नहीं चाहता हो। परन्तु वास्तविक सुख क्या है, इस पर कम ही ध्यान दिया गया है।
सुख के दो रूप है-एक भौतिक और दूसरा आध्यात्मिक; एक लौकिक और दूसरा लोकोत्तर; एक बाह्य दूसरा आन्तरिक । लौकिक सुख कर्म-जन्य है, पुण्य के उदय से मिलने वाला है, और दूसरा क्षायोपशमिक है या क्षायिक है, जो मोहकर्म के उपशान्त तथा क्षय होने पर स्व-स्वरूप की अनुभूतिरूप है । बाह्य सुख कर्म-जन्य एवं पर नैमित्तिक होने के कारण क्षणिक है, परन्तु आध्यात्मिक सुख स्वाभाविक होने के कारण अनन्त है । उसका कभी भी नाश नहीं
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