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ही चले, यह उसके स्वतन्त्र चिन्तन एवं बुद्धि का अपमान है । हमारे लिए आवश्यक नहीं कि हम पुरानी पीढ़ी का चश्मा लगाएँ ही लगाएँ । हम अपनी दृष्टि से देखें कि क्या सही हैं और क्या गलत है?
साथ ही यह भी ध्यान रखिए कि बिना किसी नयी सिद्धान्त-स्थापना की दृष्टि के कोरा अस्वीकार पलायन है । पलायनवादी के पास कुछ करने या करवाने तथा कुछ नया देने या लेने की क्षमता कतई नहीं होती । इसलिए मनुष्य अपनी बुद्धि एवं अपने स्वतन्त्र चिन्तन का विकास करे, नए सिद्धान्त की स्थापना की दृष्टि को ध्यान में रखकर नए के मोह में सब नकारता ही न चला जाए।
मई १९७६
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