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________________ आवश्यक है | जीवन की सफलता अधिक से अधिक ग्रन्थों का अध्ययन करना ही नहीं है, उसकी सफलता का मूल आधार यह होना चाहिए कि जो कुछ अध्ययन किया है, उसे जीवन के धरातल पर किस पद्धति से उतारा जाए ? जीवन और सफलता मनुष्य का सबसे उत्कृष्ट पदार्थ यदि कोई हो सकता है तो वह यही होगा कि विचारों का संस्कार कैसे किया जाए? मनुष्य का दार्शनिक विचार जैसा होता है, उसे संसार वैसा ही नजर आता है । मनुष्य के सुख और दुख, उसके जीवन की सफलता तथा विफलता, इस बात पर निर्भर नहीं करती कि उसने क्या काम किया और क्या नहीं किया? अपितु, वह इस बात पर निर्भर करते हैं कि उसके दार्शनिक विचार और जीवन के प्रति उसका दृष्टिकोण क्या है? यह दृष्टिकोण मनुष्य के ज्ञान की वृद्धि के साथ-साथ परिवर्तित होता रहता है । बाह्य संसार की क्रियाओं का ज्ञान और अपने मन की क्रियोओं का ज्ञान इस दृष्टिकोण को बदलते रहते हैं । जिस बात को हम अपनी किशोर-अवस्था में बड़ा ही महत्त्व देते थे, वे ही बातें अपनी युवावस्था में अर्थ-हीन एवं महत्त्वहीन प्रतीत होने लगती हैं । इसका कारण मनुष्य के ज्ञान की वृद्धि और इस बढ़े हुए ज्ञान के कारण, उसके दृष्टिकोण में परिवर्तन होना होता है । मनोविज्ञान के अनुसार मनुष्य जिस विचार के विषय में बार-बार चिन्तन करता है, वह उसके प्रति अपनी रागात्मक वृत्ति से अनुरंजित हो जाता है । फिर यह विचार उसके कार्यों का प्रेरक बन जाता है । मनुष्य क्या है? वह अपने विचारों का प्रतिफल अथवा प्रतिबिम्ब ही है । मनुष्य अपने जीवन में जिस-किसी भी प्रकार की क्रिया करता है, वह क्रिया उसके विचार का ही प्रतिफल है । मूर्ख से मूर्ख मनुष्य भी जब किसी भी क्रिया को प्रारंभ करता है, तब वह उसके संबंध में अवश्य ही विचार करता है | निश्चय ही, विचार-शून्य हो कर मनुष्य किसी भी प्रकार की क्रिया नहीं कर सकता | विचार जब क्रिया बनता है, तब उसे ही जीवन की सफलता कहा जाता है । विचारों का विश्लेषण कीजिए मनुष्य के पास मस्तिष्क है, विचार है, बुद्धि है और है अपना स्वतन्त्र चिन्तन । पीछे से चली आ रही हर परम्परा को वह आँखें बन्द करके स्वीकारता (९०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001306
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size13 MB
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