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५०० चिंतन की मनोभूमि
अतः आज मानव-कल्याण की दिशा एवं दशा में सही परिवर्तन लाने के लिए समानता की भावना का जन-जन में स्वतःस्फूर्त होना परम आवश्यक है। समता की सभी क्षेत्रों में आज ज्वलंत माँग है, जिसे टाला नहीं जा सकता। यही एक कड़ी है, जिससे मानव-मानव के बीच भावनात्मक एकता की स्थापना सम्भव है ।
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