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________________ नारी जीवन का अस्तित्व ४७३ बेकार हो जाए और शेष आधा शरीर ज्यों का त्यों सबल और कार्यकारी बना रहे। एक हाथ और एक पैर के सुन हो जाने पर दूसरा हाथ और दूसरा पैर हरकत में होंगे किन्तु काम करने को नहीं होंगे। इसके विपरीत यदि शरीर के दोनों हिस्से ठीक अवस्था में रह कर गति करते हैं, तो वह अवश्य काम करेगा और ऐसा ही जीवन समाज को कुछ दे सकेगा और कुछ ले सकेगा। आज ऐसा लगता है, समाज के आधे अंग को लकवा मार गया है और वह बेकार हो गया है। उसके पास वह ज्ञान, विचार और चिन्तन नहीं रहा और न अपनी सन्तान को महान् बनाने की वह कला ही रह गई है और, इस रूप में हजारों गालियाँ, जो लड़कों-लड़कियों की जुबान पर आती हैं, बहनों की ओर से ही आती हैं। हजारों कुसंस्कार आते हैं, मेरे-तेरे की दुर्भावना आती है और द्वैतवाद की कड़वी घुट्टियाँ पिलाई जाती हैं! इस प्रकार, बच्चों के मन में जहाँ अमृत भरा जाना चाहिए, वहाँ जहर भरा जाता है और आगे चलकर माता-पिता को जब उसका परिणाम भोगना पड़ता है, तो वह रोते-चिल्लाते हैं ! आज बच्चों का जो ऐसा भ्रष्ट जीवन बन रहा है, इसका एकमात्र कारण यही है कि हमारी बहनों की सभ्यता ऊँची नहीं रही। ___पक्षी को आकाश में उड़ने के लिए दोनों पंखों से मजबूत होना आवश्यक है। जब दोनों पंख सशक्त होंगे, तभी वह उड़ सकेगा, एक पंख से नहीं। यही बात समाज के लिए भी है। समाज का उत्थान पुरुष-स्त्री दोनों के समान शक्तिसम्पन्न होने पर निर्भर है। आज हमारा समाज जो इतना गिरा हुआ है, उसका मूल कारण यही है कि उसका एक पंख इतना दुर्बल और नष्ट-भ्रष्ट हो गया है कि उसमें कर्तृत्वशक्ति नहीं रही, जीवन नहीं रहा। एक पंख के निर्जीव हो जाने पर दूसरा पंख भी काम नहीं कर सकता और इस प्रकार समाज का सारा जीवन गिरने के लिए हो सकता है। ऐसी स्थिति में उत्थान की सम्भावना ही क्या है ? __आज सर्वत्र विषम हवाएं चल रही हैं। जब-तब यह सुनने को मिलता है कि आज घर-घर में कलह की आग बेतरह सुलग रही है। मन में प्रश्न उठता है कि यह कलह जागता कहाँ से है ? मालूम करेंगे तो पता चलेगा कि ९० प्रतिशत झगड़े इन्हीं बहिनों के कारण होते हैं। उसके मूल में किसी न किसी बहिन की नासमझी ही होती है। झगड़े और मन-मुटावों का पता करने चलेंगे तो पाएंगे कि उनमें से अधिकांश का उत्तरदायित्व बहिनों पर ही है। किन्तु इसका भी कारण बहनों का अज्ञान है। उनकी अज्ञानता ने ही उन्हें ऐसी स्थिति में ला दिया है। यदि वे ज्ञान का प्रकाश पा जाएँ और अपने हृदय को विशाल एवं विराट् रक्खें, अपने जीवन को महान् बनाएँ और कुछ लेने की बुद्धि न रखकर सब कुछ दे देने की बुद्धि रक्खें, यदि उनके हाथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001300
Book TitleChintan ki Manobhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages561
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size10 MB
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