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अन्तर्जीवन |४२७ | होता है, तभी हममें सही निर्णय करने का सामर्थ्य आता है । उसी समय हम ठीक विचार कर सकते हैं और दूसरों को भी ठीक बात समझा सकते हैं।
आपको क्रोध आ गया गुस्सा चढ़ गया, तो आपने अपनी बुद्धि की हत्या कर दी और जब बुद्धि का ही ढेर हो गया, तो निर्णय कौन करेगा ? क्रोधी का निर्णय सही नहीं होगा और कदाचित् वह जीवन में बड़ा ही भयंकर साबित होगा । वह निर्णय कभी भी शान्तिदायक नहीं हो सकता। यदि हम अपने जीवन को शान्तिपूर्ण बनाना चाहते हैं, तो वह क्रोध से शान्तिपूर्ण कभी नहीं बन सकता।
क्रोध के शमन का मार्ग :
प्रश्न हो सकता है कि क्रोध से किस प्रकार बचा जा सकता है ? इसका उत्तर यह है कि जब घर में आग लगती है, तो उसे बुझाने के लिए जिस प्रकार पानी का प्रबन्ध किया जाता है, उसी प्रकार जब क्रोध आए तो उसे क्षमा एवं सहनशीलता के जल से बुझा दें और अभिमान से लड़ने के लिए नम्रता को अड़ा दें। जब तक विरोधी चीजें नहीं आयेंगी, तब तक कुछ नहीं होगा। क्रोध को क्रोध से और अभिमान को अभिमान से कभी भी नहीं जीता जा सकता । गरम लोहे को गरम लोहे से काटना कभी संभव नहीं । उसे काटने के लिए ठंडे लोहे का ही प्रयोग करना पड़ेगा। जब ठंडा लोहा गरम हो जाता है, तो उसकी अपने आपको बचाने की कड़क कम हो जाती है । वह ठंडा होने पर अधिक देर तक टिक सकता है, किन्तु गरम होकर तो उसने अपनी शक्ति ही गँवा दी। वह ठंडे लोहे से कटना शुरू हो जाता है। तो इस रूप में मालूम हुआ कि गरम लोहे को गरम लोहे से नहीं काट सकते, उसको ठंडे लोहे से ही काटना संभव होगा ।
भगवान् महावीर ने कहा कि "क्रोध प्रेम की हत्या कर डालता है। "१ इसका मतलब यह हुआ कि जो चीजें प्रेम के सहारे टिकने वाली हैं, क्रोध उन सबका नाश कर डालता है। इस रूप में विचार कीजिए तो मालूम होगा कि परिवार, समाज और गुरु-शिष्य आदि का सम्बन्ध स्नेह के आधार पर ही टिका हुआ है। वहाँ अगर क्रोध उत्पन्न हो जाए, तो वहाँ कोई भी प्रेम सम्बन्ध टिकने वाला नहीं, यह अनुभवगम्य सत्य है। जहाँ क्रोध की ज्वालाएँ उठती हैं, वहाँ भाई-भाई का, पति-पत्नी का, पिता-पुत्र का और सास-बहू का प्रेम-सम्बन्ध भी टूट जाता है और तब परिवार में रहता हुआ भी इन्सान अकेला रहता है। देश में करोड़ों लोगों के साथ रहता हुआ भी वह अभागा अकेला ही भटकता है।
लक्ष्मी का निवास स्थान :
अतः यह विचार स्पष्ट है कि जीवन का आदर्श है प्रेम । भारतीय साहित्य में जिक्र आता है कि एक बार इन्द्र कहीं जा रहे थे। उन्हें लक्ष्मी रास्ते में बैठी दिखलाई
१. 'कोहो पीई पणासेइ ।'
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- दशवैकालिक
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