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अन्तर्जीवन ४२५ हमारा हृदयस्थल : अर्जुन और कृष्ण का समन्वय :
वास्तव में यह मत गलत नहीं है कि महाभारत में कृष्ण और अर्जुन थे और हमारे हृदय में भी कृष्ण और अर्जुन विराजमान हैं। कृष्ण ज्ञानयोग के प्रतीक हैं और अर्जुन कर्मयोग के प्रतीक। कर्मयोग अकेला सिद्धि प्राप्त नहीं कर सकता। वह तो अंधे की तरह टकराएगा। उसको नेतृत्व मिलना चाहिए, एक समर्थ पथ-प्रदर्शक चाहिए। वह पथ-प्रदर्शक ज्ञान के अतिरिक्त और कौन हो सकता है ? ज्ञान जब कर्म का पथप्रदर्शन करता है, तो दोनों का समन्वय हो जाता है। यही कृष्ण और अर्जुन का समन्वय है। इस समन्वय के साथ जब जीवन का महाभारत लड़ा जाता है, तो उनमें विजय होना ध्रुव है और वासना रूपी कौरवों का पतन भी निश्चित है। क्रोध और मान :
हमारे भीतर बहुत बड़ी-बड़ी बुराइयाँ घुसी हुई हैं, उनमें क्रोध और मान की गिनती पहले होती है। भगवान् महावीर ने भी कषायों में क्रोध और मान का नाम पहले लिया है। चार कषाय, जो जन्म-मरण का नाटक रचते रहते हैं और जन्मजन्मान्तर से दुःख देते रहते हैं, इनमें क्रोध पहला और मान दूसरा है। लोकप्रियता का आधार : प्रेम
यह तो आप जानते हैं कि मनुष्य की मूल प्रकृति शान्त रहना और प्रेमपूर्वक चलना है। मनुष्य संसार में जहाँ कहीं भी रहना चाहता है, अकेला नहीं रह सकता.। उसको साथी चाहिए और साथी बनाने के लिए प्रेम जैसी चीज भी चाहिए। प्रेम से ही एक व्यक्ति दूसरे से जुड़ता है। परिवार में दस-बीस आदमी रह रहे हैं, तो प्रेम के कारण ही मिलकर रह सकते हैं। घृणा का काम तो जोड़ना नहीं, अलग करना है ! इसी तरह बिरादरी में हजारों आदमी जुड़े रहते हैं। उन्हें जोड़ने वाला एकमात्र प्रेम ही है तो परिवार में पारिवारिक प्रेम, समाज से सामाजिक प्रेम और राष्ट्र में राष्ट्रीय प्रेम ही आपस में मनुष्य जाति को जोड़े हुए हैं। जिसके हृदय में प्रेम का वास है, वह अपने हजारों और लाखों प्रेमी बनाता चलता है। प्रेम और क्रोध : परस्पर विरोधी
___ मनुष्य क्रोध कर ले और प्रेम भी कर ले, यह नहीं हो सकता।.ये दोनों परस्पर विरोधी हैं। जहाँ क्रोध होगा, वहाँ प्रेम नहीं हो सकता और जहाँ प्रेम है, वहाँ क्रोध का अस्तित्व नहीं। ईश्वर की भी शक्ति नहीं कि वह दिन और रात को एक सिंहासन पर ले आए। दिन और रात एक नहीं रह सकते। राम और रावण दोनों एक सिंहासन पर नहीं बैठ सकते। एक बैठेगा तो दूसरे को हटना पड़ेगा। राम की पूजा करनी है, तो रावण को सिंहासन से उतारना पड़ेगा और यदि रावण को पूजना है, तो राम को उतारना पड़ेगा।
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