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________________ ३७० चिंतन की मनोभूमि लिए समय एवं शक्ति की बर्बादी करना मूर्खता है। हमारा बाहरी जीवन सादा और आन्तरिक जीवन सद्गुणों एवं सद्विचारों से सम्पन्न होना चाहिए।१ सौन्दर्य आत्मा का गुण है। उसे चमकाने के लिए आत्म-शक्ति को बढ़ाने का प्रयत्न करें। अपने आप पर नियन्त्रण रखना सीखें। वासनाओं के प्रवाह में न बह कर, उन्हें नियन्त्रित करने की कला सीखें। यही कला जीवन को बनाने की कला है और इसी का नाम आचार है, चरित्र (Character) है और नैतिक शक्ति (Moral Power) है। इसका विकास, आत्मा का विकास है, जीवन का विकास है। ब्रह्मचर्य की महिमा का गान समस्त शास्त्रों ने एक स्वर से किया है। " देव-दाणव-गंधव्वा, जक्ख-रक्खस-किन्नरा। बंभयारि नमसंति, दुक्करं जे करेन्ति तं।।" -उत्तराध्ययन सूत्र, १६ - जो महान् आत्मा दुष्कर ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं, समस्त दैवी शक्तियाँ उनके चरणों में सिर झुका कर खड़ी हो जाती हैं। देव, दानव, गंधर्व, यक्ष, राक्षस और किन्नर ब्रह्मचारी के चरणों में सभक्तिभाव नमस्कार करते हैं। ब्रह्मचर्य संयम का मूल है। परब्रह्म मोक्ष का एकमात्र कारण है। ब्रह्मचर्य पालन करने वाला, पूज्यों का भी पूज्य है। सुर, असुर एवं नर-सभी का वह पूज्य होता है, जो विशुद्ध मन से ब्रह्मचर्य की साधना करता है। ब्रह्मचर्य के प्रभाव से मनुष्य स्वस्थ, प्रसन्न और सम्पन्न रहता है। ब्रह्मचर्य की साधना से मनुष्य का जीवन तेजस्वी और ओजस्वी बन जाता है। 8. Let our life be simple in its outer aspect and rich in its inner gain. --Rabindra Nath Tagore For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001300
Book TitleChintan ki Manobhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages561
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size10 MB
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