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________________ अस्तेय-व्रत ३४७ घी के व्यापारी घी में वनस्पति का मेल करते हैं। दूध वाले दूध में पानी डालते हैं। शक्कर में आटा डाला जाता है। कपड़े धोने के सोडे में चूना मिलाया जाता है। जीरा और अजवाइन में उसी रंग की मिट्टी मिलाई जाती है। जीरा में किस प्रकार मिलावट की जाती है, इस सम्बन्ध में अभी एक लेख कुछ दिनों पहिले 'हरिजन सेवक' में प्रकाशित हुआ था। घास को जीरा के आकार में काटने के कई कारखाने चलते हैं। जीरे की आकार में घास के टुकड़े किए जाते हैं और फिर उन पर गुड़ का पानी छिड़का जाता है। इस प्रकार नकली जीरा तैयार किया जाता है, जो थैली में भरकर असली जीरे के नाम से बेचा जाता है। खाने के तेल में शुद्ध किया हुआ गन्ध रहित घासलेट का तेल मिलाया जाता है। खाद्य पदार्थों में इस प्रकार जहरीली वस्तुओं का सम्मिश्रण करना कितना भयंकर काम है? क्या यह नैतिक पतन की पराकाष्ठा नहीं है ? कालीमिर्च के भाव बहुत बढ़ जाने से व्यापारी लोग उनमें पपीते के बीजों का सम्मिश्रण करने लग गये हैं। गेहूँ, चावल, चना आदि में भी उसी रंग के कंकरों का मिश्रण किया जाता है। इस प्रकार जो हिन्दू नैतिक दृष्टि से विदेशों में सबसे ऊँचा समझा जाता था, वही आज सबसे नीचा. समझा जाने लगा है। दवाएँ भी नकली बनने लग गई हैं। नैतिक पतन की भी क्या कोई सीमा रही है ? बीमार मनुष्यों के उपयोग में आने वाली वस्तुओं में भी जहाँ इस तरह मिलावट की जाती हो गलत एवं हानिकारक दवाएँ बेची जाती हों, तो कहिए यह हिन्द जैसे धर्मप्रधान देश के लिए कितनी लज्जास्पद बात है! पत्र-पत्रिकाओं में विज्ञापन छपाकर, वस्तुओं में जो गुण हों, उनका अतिशयोक्तिपूर्ण उल्लेख करना भी इस अतिचार में आ जाता है। इन अतिचारों का यदि सामान्यजन त्याग कर दें, तो पृथ्वी पर स्वर्ग उतारा जा सकता है। इन सभी अतिचारों से मुक्त बनने में ही मानव-जीवन का श्रेय है। . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001300
Book TitleChintan ki Manobhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages561
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size10 MB
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