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________________ ३४६ चिंतन की मनोभूमि अस्तेय के अतिचार: अस्तेय व्रत के पाँच अतिचार हैं"स्तेन-प्रयोग-तदाहृतादान-विरुद्धराज्यातिक्रम-हीनाधिक मानोन्मानप्रतिरूपकव्यवहाराः।" स्तेन प्रयोग-किसी को चोरी करने की प्रेरणा देना अथवा उसके काम में सहमत होना, इस अतिचार का दोष है। काला बाजार से चोरी का अनाज लेकर किसी ने जीमनवार किया हो, उसमें जीमने जाना भी चोरी में सहमत होने जैसा ही है। कई मनुष्य लग्नादि प्रसंग पर रूढ़ियों के वशीभूत हो अथवा बड़े घर की बड़ी रीति के वशीभूत हो जीमनवार करते हैं और अज्ञानी मानवों की वाहवाही सुनने के लिए काला बाजार करते हैं। कालाबाजार की वस्तु खरीदने वाला स्वयं तो पाप का भागीदार बनता ही है, पर साथ ही कालाबाजार करने वाले को भी इससे उत्तेजन मिलता है। चोरी किसी एक मनुष्य ने की हो, फिर भी उस काम में किसी भी तरह भाग लेने वाला दोषी माना गया है। इस प्रकार शास्त्रकारों ने १८ प्रकार के चोर कहे हैं। कालाबाजार से वस्तुओं की बिक्री करने वाले, खरीदने वाले, रसोई करने वाले, जीमने वाले, इस कार्य की प्रशंसा करने वाले, ये सभी कम-ज्यादा अंश में चोरी के पाप के भागीदार कहे जाते हैं। तदाहृतादान—चोर की चुराई हुई वस्तुएँ लेना तदाहृतादान है। चोरी की हुई वस्तु हमेशा सस्ती ही बेची जाती है, जिससे लेने वाले का दिल भी ललचाता है। कोई शक्कर, चावल या अन्य राशन की वस्तुएँ चोरी करके लाया हो, और आप उन्हें खरीदें, तो उससे यह अतिचार लगता है। विरुद्ध-राज्यातिक्रम-प्रजा के हित के लिए सरकार ने जो तरीके बनायें हों, उनका भंग करना 'विरुद्ध-राज्यातिक्रम' है। अगर प्रजा इस अतिचार दोष से मुक्त रहे, तो सरकार को प्रजाहित के कार्य करना सरल बन जाए। हीनाधिक-मानोन्मान-कम ज्यादा तोल से माप रखना या न्यूनाधिक देना इस अतिचार में आता है। आपकी दुकान पर समझदार या नासमझ वृद्ध या बालक चाहे कोई भी वस्तु खरीदने आवे तो आपको सबके साथ प्रामाणिकता का ही व्यवहार रखना चाहिए। अप्रामाणिकता का भी सभ्य चोरी में शुमार होता है। अनजान मनुष्यों से अधिक भाव लेना साहूकारी ठगाई है। ऐसी चोरी दिन की चोरी है। चोरी चाहे दिन की हो या रात की, चोरी ही कही जाती है। चोर उजला हो या मैला, काला हो या सफेद, परन्तु जो चोरी करता है, वह चोर ही कहा जाता है। प्रतिरूपक-व्यवहार-वस्तु में मेल-सेल करना या असली वस्तु के बजाय नकली वस्तु बनाकर बेचना 'प्रतिरूपक व्यवहार' है, जो कि पांचवां अतिचार है। आज लगभग हर एक चीज में मेल-सेल देखी जाती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001300
Book TitleChintan ki Manobhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages561
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size10 MB
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