SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 350
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सत्य का सही मन्दिर: अन्तर्मन : लोग ईश्वर के नाम पर भटकते-फिरते थे और देवी-देवताओं के नाम पर काम करते थे, किन्तु अपने जीवन के लिए कुछ भी नहीं करते थे । भगवान् महावीर ने उन्हें बतलाया कि सत्य ही भगवान् है । भगवान् का यह कथन मनुष्य को अपने ही भीतर सत्य को खोजने की प्रेरणा थी । सत्य अपने अन्दर ही छिपा है। उसे कहीं बाहर ढूँढ़ने के बजाय भीतर ही खोजना है। जब तक अन्दर का भगवान् नहीं जागेगा और अन्दर के सत्य की झाँकी नहीं होगी, भीतर का देवता तुम्हारे भीतर प्रकाश नहीं फैलाएगा, तब तक तुम तीन काल और तीन लोक में भी, कहीं पर भी ईश्वर के दर्शन नहीं पा सकोगे । सत्य का विराट् रूप ३२९ 1 कोई धनवान है, तो उसको भी बतलाया गया कि साधना अन्दर करो और जिसके पास एक पैसा भी नहीं, चढ़ाने के लिए एक चावल भी नहीं, उससे भी कहा गया कि तुम्हारा भगवान् भीतर ही है। भीतर के उस भगवान् को चढ़ाने के लिए चावल का एक भी दाना नहीं, तो न सही। इसके लिए चिन्तित होने की कोई जरूरत नहीं है। उसे चाँदी-सोने की भूख नहीं है। उसे मुकुट और हार पहनने की भी लालसा नहीं है । उसे नैवेद्य की भी आवश्यकता नहीं है। एकमात्र अपनी सद्भावना . के स्वच्छ और सुन्दर सुमन उसे चढ़ाओ और हृदय की सत्यानुभूति से उसकी पूजा करो। यही उस देवता की पूजा की सर्वोत्तम सामग्री है, यही उसके लिए अनुपम अर्ध्य है । इसी से अन्दर का देवता प्रसन्न होगा। इसके विपरीत यदि बाहर की ओर देखोगे, तो वह तुम्हारा अज्ञान होगा। भीतर देखने पर तुम्हें आत्मा-परमात्मा की शक्ल बदलती हुई दिखलाई देगी! तुम्हारे अन्दर के राक्षस-क्रोध, मान, माया, लोभ आदि, जो हजारों तलवारें लेकर तुम्हें तबाह कर रहे हैं, सहसा अन्तर्ध्यान हो जाएँगे । अन्दर का देवता रोशनी देगा, तो अन्धकार में प्रकाश हो जाएगा । इस प्रकार वास्तव में अन्दर में ही भगवान् मौजूद है। बाहर देखने पर कुछ भी हाथ नहीं लगने वाला है। एक साधक ने कहा है " ढूँढन चाल्या ब्रह्म को, ढूँढ फिरा सब ढूँढ । जो तू चाहे ढूँढना, इसी ढूँढ में ढूँढ ॥ तू ब्रह्म को और ईश्वर को ढूँढने के लिए चला है और दुनिया भर की जगह तलाश कर चुका है और इधर-उधर भटकता फिरता है। कभी नदियों के पानी में और कभी पहाड़ों की चोटी पर सारी पृथ्वी के ऊपर ईश्वर की तलाश करता रहा है किन्तु वह कहाँ है? यदि तुझे ढूँढना है, वास्तव में तलाश करनी है और सत्य की झाँकी अपने जीवन में उतारनी है, तो सबसे बड़ा मन्दिर तेरा शरीर ही है, और उसी में ईश्वर विराजमान है। शरीर में जो आत्मा निवास कर रही है, वही सबसे बड़ा देवता है। यदि उसको तलाश कर लिया, तो फिर अन्यत्र कहीं तलाश करने की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001300
Book TitleChintan ki Manobhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages561
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy