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________________ धर्म की कसौटी : शास्त्र ३०९ है। मैंने अपने चिन्तन-मनन से समाधान पाया है, और अनेक जिज्ञासुओं को भी दिया है, मैं तो मानता हूँ कि इसी समाधान के कारण आज भी मेरे मन में महावीर एवं अन्य ऋषि-मुनियों के प्रति श्रद्धा का निर्मल स्रोत उमड़ रहा है, मेरे जीवन का कणकण आज भी सहज श्रद्धा के रस से आप्लावित हो रहा है और मैं तो सोचता हूँ, मेरी यह स्थिति उन तथाकथित श्रद्धालुओं से अधिक अच्छी है, जिनके मन में तो ऐसे कितने ही प्रश्न सन्देह में उलझ रहे हैं, किन्तु वाणी में शास्त्रश्रद्धा की धुआँधार गर्जना हो रही है। जिनके मन में केवल परम्परा के नाम पर ही कुछ समाधान हैं, जिनकी बुद्धि पर इतिहास की अज्ञानता के कारण विवेक-शून्य श्रद्धा का आवरण चढ़ा हुआ है, उनकी श्रद्धा कल टूट भी सकती है, और न भी टूटे तो कोई. उसकी श्रेयसता मैं नहीं समझता। किन्तु विवेकपूर्वक जो श्रद्धा जगती है, चिन्तन से स्फुरित होकर जो ज्योति प्रकट होती है, उसी का अपने और जगत् के लिए कुछ मूल्य है। उस मूल्य की स्थापना आज नहीं तो कल होगी. अवश्य ही होगी। निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि शास्त्रों का सही अभिधान ही हमारे जीवन की पथदिशा प्रशस्त करता है और पर्याय क्रम से ये शास्त्र ही हमारे धर्म के आधार भी हैं, उसकी सही कसौटी हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001300
Book TitleChintan ki Manobhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages561
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size10 MB
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