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धर्म की कसौटी' : शास्त्र ३०१ कर दिया है। जब यह मान लिया है कि अंग आगमों में भी आचार्यों का अँगुली-स्पर्श हुआ है, उन्होंने संक्षिप्तीकरण किया है, तो यह क्यों नहीं माना जा सकता कि कहींकहीं कुछ मूल से बढ़ भी गया है, विस्तार भी हो गया है। मैं नहीं कहता कि उन्होंने कुछ ऐसा किसी गलत भावना से किया है, भले ही यह सब कुछ पवित्र प्रभु-भक्ति एवं श्रुत महत्ता की भावना से ही हुआ हो, पर यह सत्य है कि जब घटाना संभव है, तो बढ़ाना भी संभव है और, इस संभावना के साक्ष्य रूप प्रमाण भी आज उपलब्ध हो रहे हैं। भूगोल-खगोल: महावीर की वाणी नहीं :
यह सर्व सम्मत तथ्य आज मान लिया गया है कि मौखिक परम्परा एवं स्मृति-दौर्बल्य के कारण बहुत-सा श्रुत विलुप्त हो गया है, तो यह क्यों नहीं माना जा सकता कि सर्वसाधारण में प्रचलित उस युग की कुछ मान्यताएँ भी आगमों के साथ संकलित कर दी गई हैं। मेरी यह निश्चित धारणा है कि ऐसा होना सम्भव है, और वह हुआ है।
उस युग में भूगोल, खगोल, ग्रह, नक्षत्र, नदी, पर्वत आदि के सम्बन्ध में कुछ मान्यताएँ आम प्रचलित थीं, कुछ बातें तो भारत के बाहरी क्षेत्रों में भी अर्थात इस्लाम
और ईसाई धर्मग्रन्थों में भी इधर-उधर के सांस्कृतिक रूपान्तर के साथ ज्यों की त्यों उल्लिखित हुई हैं, जो इस बात का प्रमाण है कि ये धारणाएँ सर्वसामान्य थीं। जो जैनों ने भी ली, पुराणकारों ने भी ली और दूसरों ने भी। उस युग में उनके परीक्षण का कोई साधन नहीं था, इसलिए उन्हें सत्य ही मान लिया गया और वे शास्त्रों की पंक्तियों के साथ चिपट गईं! पर बाद के उस वर्णन को भगवान् महावीर के नाम पर चलाना क्या उचित है ? जिस चन्द्रलोक के धरातल के चित्र आज समूचे संसार के हाथों में पहुँच गए हैं और अपोलो-८ के यात्रियों ने आँखों से देखकर बता दिया है कि वहाँ पहाड़ है, ज्वालामुखी के गर्त हैं, श्री-हीन उजड़े भूखण्ड हैं, उस चन्द्रमा के लिए कुछ
पुराने धर्मग्रन्थों की दुहाई देकर आज भी यह मानना कि वहाँ सिंह, हाथी, बैल और . घोड़ों के रूप में हजारों देवता हैं, और वे सब मिल कर चन्द्र विमान को वहन कर
रहे हैं; कितना असंगत एवं कितना अबौद्धिक है ? क्या यह महावीर की वाणी, एक सर्वज्ञ की वाणी हो सकती है ? जिन गंगा आदि नदियों की इंच-इंच भूमि आज नाप ली गई है, उन नदियों को आज भी लाखों मील के लम्बे-चौड़े विस्तार वाली बताना, क्या यह महावीर की सर्वज्ञता एवं भगवत्ता का उपहास नहीं है?
आज हमें नये सिरे से चिंतन करना चाहिए। यथार्थ के धरातल पर खड़े होकर सत्य का सही मूल्याकंन करना चाहिए। दूध और पानी की तरह यह अलग-अलग कर देना चाहिए कि भगवान की वाणी क्या है ? महावीर के वचन क्या हैं ? एवं
१. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, ज्योतिषचक्राधिकार, चन्द्रऋद्धि वर्णन। Jain Education International
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