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धर्म की कसौटी : शास्त्र- २९१) किसी देवता की मुलाकात भी वहाँ नहीं हुई, यह क्या बात है ? ये वैज्ञानिक झूठे हैं या शास्त्र ? शास्त्र झूठे कैसे हो सकते हैं ? यह भगवान् की वाणी है, सर्वज्ञ की वाणी
विज्ञान एवं आध्यात्म का क्षेत्र :
मैं सोचता हूँ, धार्मिक के मन में आज जो यह अकुलाहट पैदा हो रही है,धर्म के प्रतिनिधि तथाकथित शास्त्रों के प्रति उनके मन में जो अनास्था एवं विचिकित्सा का ज्वार उठ रहा है, उसका एक मुख्य कारण है. वैचारिक प्रतिबद्धता। कुछ परम्परागत रूढ़ विचारों के साथ उसकी धारणा 'जुड़ गई है, कुछ तथाकथित ग्रन्थों और पुस्तकों को उसने धर्म का प्रतिनिधि शास्त्र समझ लिया है, यह न तो इसका ठीक तरह बौद्धिक विश्लेषण कर सकता है और न ही विश्लेषण प्राप्त सत्य के आधार पर उनके मोह को ठुकरा सकता है। वह बार-बार दुहराई गई धारणा एवं रूढिगत मान्यता के साथ बँध गया है, प्रतिबद्ध हो गया है, बस, यह प्रतिबद्धता-आग्रह–ही उसके मन की विचिकित्सा का कारण है।
शास्त्र की चर्चा करने से पहले एक बात हमें समझ लेनी है कि आध्यात्म और विज्ञान राम-रावण जैसे कोई प्रतिद्वन्द्वी नहीं है, दोनों ही विज्ञान हैं, एक आत्मां का विज्ञान है, तो दूसरा प्रकृति का विज्ञान है। आध्यात्म विज्ञान के अन्तर्गत आत्मा के शुद्धाशुद्ध स्वरूप, बन्धमोक्ष, शुभाशुभ परिणतियों का ह्रास-विकास आदि का विश्लेषण आता है और विज्ञान, जिसे मैं प्रकृति का विज्ञान कहना ठीक समझता हूँ, इसमें हमारे शरीर, इन्द्रिय, मन, इनका संरक्षण-पोषण एवं चिकित्सा आदि तथा प्रकृति का अन्य मार्मिक विश्लेषण समाहित होता है। दोनों का ही जीवन की अखण्ड सत्ता के साथ सम्बन्ध है। एक जीवन की अन्तरंग धारा का प्रतिनिधि है, तो एक बहिरंग धारा का। आध्यात्म का क्षेत्र मानव का अन्त:करण, अन्तश्चैतन्य एवं आत्मतत्त्व रहा है, जबकि आज के विज्ञान का क्षेत्र प्रकृति के अणु से लेकर विराट खगोल-भूगोल आदि का प्रयोगात्मक अनुसन्धान करना है, इसलिए वह हमारी भाषा में बहिरंग ज्ञान है, जबकि अन्तरंग चेतना का विवेचन, विशोधन एवं ऊर्वीकरण करना आध्यात्म का विषय है, वह अन्तरंग ज्ञान है।
इस दृष्टि से विज्ञान व आध्यात्म में प्रतिद्वन्द्विता नहीं, अपितु पूरकता आती है। विज्ञान प्रयोग है, आध्यात्म योग है। विज्ञान सृष्टि की, परमाणु आदि की चमत्कारी शक्तियों का रहस्य उद्घाटित करता है, प्रयोग द्वारा उन्हें हस्तगत करता है, और आध्यात्म उन शक्तियों का कल्याणकारी उपयोग करने की दृष्टि देता है। मानव चेतना को विकसित, निर्भय एवं निर्द्वन्द्व बनाने की दृष्टि आध्यात्म के पास है। भौतिक विज्ञान की उपलब्धियों का कब, कैसे, कितना और किसलिए उपयोग करना चाहिए, इसका निर्णय आध्यात्म देता है, वह भौतिक प्रगति को विवेक की आँख देता है फिर कैसे कोई विज्ञान और आध्यात्म को विरोधी मान सकता है ?
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