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जीव और जगत् : आधार एवं अस्तित्व ९/ जो मर्त्य है, वह टिक कर रह नहीं सकता। अतः क्षणभंगुरता की दृष्टि से, और नित्यता की दृष्टि से भी विलाप करना अज्ञान का ही द्योतक है। जो कुछ मर्त्य भाग है, वह किसी का भी क्यों न हो और किसी भी काल का क्यों न हो, कभी स्थिर नहीं रह सकता। चक्रवर्ती का ऐश्वर्य और तीर्थंकर की विभूति, देवताओं की समृद्धि तथा मनुष्यों का वैभव कभी स्थिर नहीं रहा है और कभी स्थिर नहीं रहेगा; फिर एक साधारण मनुष्य की साधारण धन-सम्पत्ति स्थिर कैसे रह सकती है ? इस जीवन में जितना सम्बन्ध है, वह सब शरीर का है, आत्मा का तो सम्बन्ध होता नहीं है। इस जीवन में जो कुछ प्रपंच है, वह सब शरीर का है, आत्मा तो प्रपंच-रहित होती है। प्रपंच और विकल्प तन-मन के होते हैं, आत्मा के नहीं, किन्तु अज्ञानवश इनको हमने अपना समझ लिया है और इसी कारण हमारा यह जीवन दुःखमय एवं क्लेशमय है। जीवन के इस दुःख और क्लेश को क्षणभंगुरता और अनित्यता के उपदेश से दूर किया जा सकता है। क्योंकि जब तक भव के विभव में अपनत्व-बुद्धि रहती है, तब तक वैभव के बंधन से विमुक्ति कैसे मिल सकती है ? पर में स्व बुद्धि को तोड़ने के लिए ही, अनित्यता का उपदेश दिया गया है।
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