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२२२६ चिंतन की मनोभूमि प्रत्यक्ष और परोक्ष :
प्रारम्भिक साधक को आत्मा और शरीर की भिन्नता की प्रतीति से आत्मज्ञान होता जाता है किन्तु वह प्रत्यक्ष नहीं, बल्कि परोक्ष रूप में होता है। इसमें आत्मज्ञान की एक अस्पष्ट और धुंधली-सी झाँकी मिलती है और पता चलता है कि अन्तर में जैसे शरीर से भिन्न कुछ है, किन्तु परोक्षबोध स्पष्ट परिबोध नहीं है, अत: आत्मबोध का पूर्ण आनन्द नहीं प्राप्त होता।
ज्ञान के दो प्रकार हैं- प्रत्यक्ष और परोक्ष। प्रत्यक्ष स्पष्ट होता है, और परोक्ष अस्पष्ट । इस सम्बन्ध में प्राचीन दर्शन सूत्र हैं.....
"स्पष्टम् प्रत्यक्षम्, अस्पष्टम् परोक्षम्।" । आत्मा बिना किसी अन्य के माध्यम से सीधा ही जो ज्ञेय का परिज्ञान करती है. वह स्पष्ट है. अतः प्रत्यक्ष है। और जिस ज्ञान के होने में आत्मा और ज्ञेय वस्तु के बीच में सीधा सम्बन्ध न होकर कोई माध्यम हो, जिसके सहारे ज्ञान प्राप्त किया जा सके, उसे परोक्ष ज्ञान कहते हैं। किसी दृश्य और घटना का अपनी आँखों से साक्षात्कार किया, यह भी एक बोध है, और किसी ने अन्य व्यक्ति से सुनकर या समाचार पत्रों में पढ़कर उसी दृश्य और घटना की जानकारी प्राप्त की। इस प्रकार ज्ञान तो दोनों ही प्रकार से प्राप्त हुआ है, किन्तु जो साक्षात् बोध अपनी आँखों से देखकर हआ है, वह कुछ और है, और किसी से सनकर या पढ़कर जो बोध प्राप्त हुआ है वह कुछ और है। यदि हमारी आँखों के सामने अग्नि जल रही है, उसमें ज्वालाएँ धधक रही हैं, चिनगारियाँ निकल रही हैं, उसका तेज चमक रहा है, तो यह एक प्रकार से अग्नि का वह ज्ञान हुआ, जिसे हम प्रत्यक्ष या स्पष्ट ज्ञान कहते हैं। और कहीं जंगल में से गुजर रहे हों, और दूर क्षितिज पर धुआँ उठता हुआ दिखाई देता हो, तो उसे देखकर कह देते हैं कि वहाँ अग्नि जल रही है, यह अग्नि का परोक्ष ज्ञान या अस्पष्ट ज्ञान हुआ। पहले उदाहरण में अग्नि का ज्ञान अपनी आँखों से स्पष्ट और प्रत्यक्ष सामने देखकर हुआ, और दूसरे उदाहरण में धुएँ को देखकर अग्नि का ज्ञान अनुमान के द्वारा हुआ। ज्ञान दोनों ही सच्चे हैं। इनमें किसी को भी असत्य करार नहीं दे सकते, किन्तु ज्ञान के जो ये दो प्रकार हैं, उनके स्वरूप में स्पष्ट अन्तर है, क्योंकि उनका प्रतीति भिन्न-भिन्न है। दोनों के दो रूप हैं। स्पष्ट अर्थात् प्रत्यक्ष ज्ञान में दृश्य का कुछ और ही रूप दिखाई पड़ता है, जबकि परोक्ष ज्ञान में अर्थात् अनुमान से कुछ दुसरा ही अनुभूति में आता है। पहले ज्ञान में अग्नि और आँख का सीधा सम्बन्ध होता है. जबकि दूसरे ज्ञान में आँख का सम्बन्ध धूम से होता है, और पश्चात् धूम से अविनाभावी अग्नि का अनुमान बाँधा जाता है।
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