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________________ साधना का मार्ग २०५ पुकारा—''जरा देखो तो ताना साफ करने का झब्बा कहाँ है ?'' इतना कहना था कि कबीर की पत्नी उसे खोजने लगी। दिन के सफेद उजाले में भी कबीर ने बिगड़ते हुए कहा "देखती नहीं हो, कितना अंधकार है ? चिराग लाकर देखो, पत्नी दौडती हुई चिराग लेकर आई और लगी खोजने। झब्बा तो कबीर के कन्धे पर रखा था। किन्तु फिर भी कबीर की पत्नी-पति की इतनी आज्ञाकारिणी थी कि जैसा उसने कहा वैसा ही करने लग गई। युवक को यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ। वह सोच ही रहा था कि आखिर यह क्या माजरा है। इतने में कबीर ने अपने लड़के और लड़की को आवाज दी। जब वे आए तो उन्हें भी वही झब्बा खोजने का आदेश दिया और वे भी चुपचाप खोजने लग गए। कुछ देर तक खोजने के बाद कबीर ने कहा-"अरे यह तो कंधे पर रहा। अच्छा जाओ, अपना-अपना काम करो।" सभी लौट गए। युवक बड़ा परेशान था कि "यह कैसा मूर्ख है ? कैसी विचित्र बातें करता है ? मेरे प्रश्न का क्या खाक उत्तर देगा ?" तभी कबीर ने उसकी ओर देखा, युवक ने फिर अपना प्रश्न दहराया। कबीर ने कहा मैं तो उत्तर दे चुका हूँ, तुम अभी समझे नहीं। अभी जो दृश्य तुमने देखा था, उससे सबक लेना चाहिए। यदि गृहस्थ बनना चाहते हो तो, ऐसे बनो कि तुम्हारे कहे पर घर वाले दिन को रात और रात को दिन मानने को भी तैयार हो जाएँ। तुम्हारे व्यवहार में इतना आकर्षण हो कि परिवार का प्रत्येक सदस्य तुम्हारे प्रति अपने आप खिंचा रहे, तब तो गृहस्थ जीवन ठीक है। अन्यथा यदि घर कुरुक्षेत्र का मैदान बना रहे, आये दिन टकराहट होती रहे, तो इस गृहस्थ जीवन से कोई लाभ नहीं। और यदि साधु बनना हो, तो चलो एक साधु के पास, तुम्हारा मार्ग दर्शन करा दें। कबीर युवक को लेकर एक साधु के पास पहुँचे, जो एक बहुत ऊँचे टीले पर रहता था। कबीर ने उन्हें पुकारा तो वह वृद्ध साधु लड़खड़ाता हुआ धीरे-धीरे नीचे उतरा। कबीर ने कहा-"बस आपके दर्शनों के लिए आया था, दर्शन हो गए।" साधु फिर धीरे-धीरे ऊपर चढा, तो कबीर ने फिर पुकारा और साधु फिर नीचे आया और पूछा-"क्या कहना है ?" कबीर ने कहा-"अभी समय नहीं है, फिर कभी आऊँगा, तब कहूँगा।" साधु फिर टीले पर चढ़ गया। कबीर ने तीसरी बार फिर पुकारा और साधु फिर नीचे आया। कबीर ने कहा "ऐसे ही पुकार लिया, कोई खास बात नहीं है" साधु उसी भाव से, उसी प्रसन्न मुद्रा से फिर वापिस लौट गया। उसके चेहरे पर कोई शिकन तक न आई। कबीर ने युवक की ओर प्रश्न भरी दृष्टि डाली ओर बोले "कुछ देखा ? साधु बनना हो तो ऐसा बनो। इतना अशक्त वृद्ध शरीर, आँखों की रोशनी कमजोर, ठीक तरह से चला भी नहीं जाता। इतना सब कुछ होने पर भी, तुमने देखा, मैंने तीन बार पुकार और तीनों बार उसी शान्त मुद्रा से नीचे आए और वैसे ही लौट गए। मुख पर जरा भी क्रोध की झलक नहीं, शिकन तक नहीं। साधु बनना चाहते हो, तो ऐसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001300
Book TitleChintan ki Manobhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages561
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size10 MB
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